उ॒ग्रा वि॑घ॒निना॒ मृध॑ इन्द्रा॒ग्नी ह॑वामहे। ता नो॑ मृळात ई॒दृशे॑ ॥५॥
ugrā vighaninā mṛdha indrāgnī havāmahe | tā no mṛḻāta īdṛśe ||
उ॒ग्रा। वि॒ऽघ॒निना॑। मृधः॑। इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑। ह॒वा॒म॒हे॒। ता। नः॒। मृ॒ळा॒तः॒। ई॒दृशे॑ ॥५॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर वायु और बिजुली कैसे हैं, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्वायुविद्युतौ कीदृश्यौ भवत इत्याह ॥
हे मनुष्या ! वयमुग्रा विघनिनेन्द्राग्नी हवामहे ताभ्यां मृधो विजयामहे यावीदृशे व्यवहारे नो मृळातस्ता यूयमपि विजानीत ॥५॥