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प्र नु वो॑चा सु॒तेषु॑ वां वी॒र्या॒३॒॑ यानि॑ च॒क्रथुः॑। ह॒तासो॑ वां पि॒तरो॑ दे॒वश॑त्रव॒ इन्द्रा॑ग्नी॒ जीव॑थो यु॒वम् ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra nu vocā suteṣu vāṁ vīryā yāni cakrathuḥ | hatāso vām pitaro devaśatrava indrāgnī jīvatho yuvam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। नु। वो॒च॒। सु॒तेषु॑। वा॒म्। वी॒र्या॑। यानि॑। च॒क्रथुः॑। ह॒तासः॑। वा॒म्। पि॒तरः॑। दे॒वऽश॑त्रवः। इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑। जीव॑थः। यु॒वम् ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:59» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:25» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब दस ऋचावाले उनसठवें सूक्त का प्रारम्भ है, इसके प्रथम मन्त्र में मनुष्य क्या करके बलिष्ठ हों, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्राग्नी) वायु और बिजुली के समान अध्यापक और उपदेशको ! (युवम्) तुम दोनों (यानि) जिन (सुतेषु) उत्पन्न हुए पदार्थों में (वीर्या) पराक्रमों को (चक्रथुः) किया करते हो उनसे (वाम्) तुम दोनों के जो (देवशत्रवः) विद्वानों से द्वेष करनेवाले शत्रु (हतासः) नष्ट हों और तुम दोनों बहुत समय तक (जीवथः) जीवते हो यह (वाम्) तुम दोनों को मैं (नु) शीघ्र (प्र, वोचा) उपदेश देता हूँ जिससे तुम दोनों के (पितरः) पालनेवाले भी ऐसा (वाम्) तुम दोनों को उपदेश दें ॥१॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य उत्पन्न हुए मनुष्यों में पराक्रम की उन्नति करते हैं, उनके शत्रु विलय (नाश) को प्राप्त होते हैं ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ मनुष्याः किं कृत्वा बलिष्ठा जायेरन्नित्याह ॥

अन्वय:

हे इन्द्राग्नी ! युवं यानि सुतेषु वीर्या चक्रथुस्तैर्वां देवशत्रवो हतास स्युश्चिरञ्जीवथ इति वामहं नु प्र वोचा। येन युवयोः पितरोऽप्येवं वामुपदिशन्तु ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (नु) सद्यः (वोचा) उपदिशामि। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (सुतेषु) निष्पन्नेषु (वाम्) युवाम् (वीर्या) वीर्याणि (यानि) (चक्रथुः) कुरुथः (हतासः) नष्टाः (वाम्) युवयोः (पितरः) पालकाः (देवशत्रवः) देवानां विदुषामरयः (इन्द्राग्नी) वायुविद्युताविवाध्यापकाध्येतारौ (जीवथः) (युवम्) युवाम् ॥१॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या उत्पन्नेषु मनुष्येषु पराक्रममुन्नयन्ति तेषां शत्रवो विलीयन्ते ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात इंद्र व अग्नीच्या गुणांचे वर्णन करण्याने या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - जी माणसे पराक्रम करून उन्नती करतात त्यांच्या शत्रूंचा नाश होतो. ॥ १ ॥