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तां पू॒ष्णः सु॑म॒तिं व॒यं वृ॒क्षस्य॒ प्र व॒यामि॑व। इन्द्र॑स्य॒ चा र॑भामहे ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tām pūṣṇaḥ sumatiṁ vayaṁ vṛkṣasya pra vayām iva | indrasya cā rabhāmahe ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ताम्। पू॒ष्णः। सु॒ऽम॒तिम्। व॒यम्। वृ॒क्षस्य॑। प्र। व॒याम्ऽइ॑व। इन्द्र॑स्य। च॒। आ। र॒भा॒म॒हे॒ ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:57» मन्त्र:5 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:23» मन्त्र:5 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या जान कर क्या आरम्भ करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (वयम्) हम लोग जिस (पूष्णः) पृथिवी सम्बन्धिनी (सुमतिम्) उत्तम बुद्धि को (वृक्षस्य) काटने योग्य पदार्थ की (वयामिव) वृक्ष की दृढ़ विस्तीर्ण शाखा के समान वा (इन्द्रस्य) बिजुलीरूप अग्नि सम्बन्धिनी उत्तम मति का (च) भी (प्र, आ, रभामहे) आरम्भ करें वैसे (ताम्) उसको तुम भी प्रारम्भ करो ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! तुम भूगर्भविद्या और विद्युद्विद्या को प्राप्त होकर कार्यसिद्धि के लिये क्रिया का आरम्भ करो ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं विज्ञाय किमारब्धव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! वयं यां पूष्णः सुमतिं वृक्षस्य वयामिवेन्द्रस्य च प्राऽऽरभाम तथा तां यूयमपि प्रारभध्वम् ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ताम्) (पूष्णः) पृथिव्याः (सुमतिम्) शोभनां प्रज्ञाम् (वयम्) (वृक्षस्य) छेद्यस्य (प्र) (वयामिव) यथा वृक्षस्य सुदृढां विस्तीर्णां शाखाम् (इन्द्रस्य) विद्युतः (च) (आ) समन्तात् (रभामहे) आरम्भं कुर्याम ॥५॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यूयं भूगर्भविद्यां विद्युद्विद्यां च प्राप्य कार्यसिद्धये क्रियामारभध्वम् ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! तुम्ही भूगर्भविद्या व विद्युतविद्या प्राप्त करून कार्यसिद्धीचे काम सुरू करा. ॥ ५ ॥