इन्द्रा॒ नु पू॒षणा॑ व॒यं स॒ख्याय॑ स्व॒स्तये॑। हु॒वेम॒ वाज॑सातये ॥१॥
indrā nu pūṣaṇā vayaṁ sakhyāya svastaye | huvema vājasātaye ||
इन्द्रा॑। नु। पू॒षणा॑। व॒यम्। स॒ख्याय॑। स्व॒स्तये॑। हु॒वेम॑। वाज॑ऽसातये ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब छः ऋचावाले सत्तावनवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में मनुष्यों को किसके साथ मित्रता करनी चाहिये, इस विषय का वर्णन करते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ मनुष्यैः केन सह सख्यं कार्य्यमित्याह ॥
इन्द्रापूषणा वयं सख्याय स्वस्तये वाजसातये नु हुवेम ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात भूमी विद्युतच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वीच्या सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.