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स॒द्यश्चि॒द्यस्य॑ चर्कृ॒तिः परि॒ द्यां दे॒वो नैति॒ सूर्यः॑। त्वे॒षं शवो॑ दधिरे॒ नाम॑ य॒ज्ञियं॑ म॒रुतो॑ वृत्र॒हं शवो॒ ज्येष्ठं॑ वृत्र॒हं शवः॑ ॥२१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sadyaś cid yasya carkṛtiḥ pari dyāṁ devo naiti sūryaḥ | tveṣaṁ śavo dadhire nāma yajñiyam maruto vṛtrahaṁ śavo jyeṣṭhaṁ vṛtrahaṁ śavaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒द्यः। चि॒त्। यस्य॑। च॒र्कृ॒तिः। परि॑। द्याम्। दे॒वः। न। एति॑। सूर्यः॑। त्वे॒षम्। शवः॑। द॒धि॒रे॒। नाम॑। य॒ज्ञिय॑म्। म॒रुतः॑। वृ॒त्र॒ऽहम्। शवः॑। ज्येष्ठ॑म्। वृ॒त्र॒ऽहम्। शवः॑ ॥२१॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:48» मन्त्र:21 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:4» मन्त्र:5 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:21


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

किस राजा की पुण्यरूप कीर्त्ति होती है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्य) जिस राजा की (चर्कृतिः) निरन्तर उत्तम क्रिया (देवः) देदीप्यमान (सूर्यः) सविता और (द्याम्) प्रकाश के (न) समान (सद्यः) शीघ्र विनय को (परि, एति) सब ओर से प्राप्त होती वा जिसके (मरुतः) प्रजा जन (त्वेषम्) देदीप्यमान (नाम) संज्ञा (यज्ञियम्) यज्ञ सम्पादक और (शवः) बल को (दधिरे) धारण करते हैं वा (वृत्रहम्) शत्रुओं के नाश करनेवाले (शवः) बल वा (ज्येष्ठम्) प्रशंसित (वृत्रहम्) धन प्राप्त करनेवाले (शवः, चित्) बल को भी धारण करते हैं, उसका सर्वत्र विजय होता है ॥२१॥
भावार्थभाषाः - जो राजा विद्या और विनय से युक्त, पुरुषार्थी, दृढप्रतिज्ञा करनेवाला, जितेन्द्रिय, धार्मिक, सत्यवादी होकर धार्म्मिक विद्वानों को अधिकार में संस्थापन कर पुत्र के समान प्रजाजनों को पालता है, उसकी इस जगत् में सूर्य्य के समान कीर्ति फैलती है ॥२१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

कस्य राज्ञः पुण्यकीर्त्तिर्जायत इत्याह ॥

अन्वय:

यस्य राज्ञश्चर्कृतिर्देवः सूर्यो द्यां न सद्यो विनयं पर्य्येति यस्य मरुतस्त्वेषं नाम यज्ञियं शवो दधिरे वृत्रहं शवो ज्येष्ठं वृत्रहं शवश्चिद्दधिरे तस्य सर्वत्रैव विजयो सूर्य्यवत् कीर्तिः प्रसरति ॥२१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सद्यः) (चित्) अपि (यस्य) (चर्कृतिः) भृशमुत्तमा क्रिया (परि) सर्वतः (द्याम्) प्रकाशम् (देवः) देदीप्यमानः (न) इव (एति) प्राप्नोति गच्छति वा (सूर्यः) सविता (त्वेषम्) देदीप्यमानम् (शवः) बलम् (दधिरे) दधति (नाम) संज्ञाम् (यज्ञियम्) यज्ञसम्पादकम् (मरुतः) मनुष्याः (वृत्रहम्) शत्रुनाशकम् (शवः) बलम् (ज्येष्ठम्) प्रवृद्धम् (वृत्रहम्) धनप्रापकम् (शवः) बलम् ॥२१॥
भावार्थभाषाः - यो राजा विद्याविनययुक्तः पुरुषार्थी दृढप्रतिज्ञो जितेन्द्रियो धार्मिकः सत्यवादी सन् धार्मिकान् विदुषोऽधिकारे संस्थाप्य पुत्रवत्प्रजाः पालयति तस्याऽत्र जगति सूर्य्यवत् कीर्तिः प्रसरति ॥२१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो राजा विद्या व विनयाने युक्त असून पुरुषार्थी, दृढप्रतिज्ञ, जितेंद्रिय, धार्मिक, सत्यवादी असतो तो धार्मिक विद्वानांना अधिकार देतो व प्रजेचे पालन करतो. त्याची सूर्याप्रमाणे कीर्ती होते. ॥ २१ ॥