वांछित मन्त्र चुनें

या शर्धा॑य॒ मारु॑ताय॒ स्वभा॑नवे॒ श्रवोऽमृ॑त्यु॒ धुक्ष॑त। या मृ॑ळी॒के म॒रुतां॑ तु॒राणां॒ या सु॒म्नैरे॑व॒याव॑री ॥१२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yā śardhāya mārutāya svabhānave śravo mṛtyu dhukṣata | yā mṛḻīke marutāṁ turāṇāṁ yā sumnair evayāvarī ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

या। शर्धा॑य। मारु॑ताय। स्वऽभा॑नवे। श्रवः॑। अमृ॑त्यु। धुक्ष॑त। या। मृ॒ळी॒के। म॒रुता॑म्। तु॒राणा॑म्। या। सु॒म्नैः। ए॒व॒ऽयाव॑री ॥१२॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:48» मन्त्र:12 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:3» मन्त्र:2 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:12


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब माता जन सन्तानों को सदा शिक्षा देवें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् जनो ! (या) जो विद्या और सुन्दरशिक्षायुक्त विद्या पढ़ाने वा उपदेश करनेवाली (मारुताय) मनुष्यों के इस (स्वभानवे) अपनी विशेष बुद्धि के प्रकाश वा (शर्धाय) बल के लिये (अमृत्यु) जिसमें मृत्युभय विद्यमान नहीं उस (श्रवः) श्रवण को (धुक्षत) परिपूर्ण करे वा (या) जो विदुषी स्त्री (मृळीके) सुख करनेवाले व्यवहार में (तुराणाम्) शीघ्रकारी (मरुताम्) मनुष्यों के बीच मृत्युभय जिसमें नहीं उस श्रवण को परिपूर्ण करे तथा (सुम्नैः) सुखों से (या) जो शिक्षा करने वा (एवयावरी) दुःख निवारणवाली सन्तानों की शिक्षा करती है, वही यहाँ मानने योग्य होती है ॥१२॥
भावार्थभाषाः - वे ही स्त्रियाँ धन्य हैं, जो अपने सन्तानों को विद्या और सुन्दर शिक्षायुक्त करने व कराने को निरन्तर प्रयत्न करती हैं ॥१२॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ मातरः सन्तानान् सदा शिक्षेरन्नित्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसो ! या मारुताय स्वभानवे शर्धायामृत्यु श्रवो धुक्षत या मृळीके तुराणां मरुताममृत्यु श्रवो धुक्षत सुम्नैर्यैवयावरी सन्तानाञ्छिक्षितान् करोति सैवाऽत्र माननीया भवति ॥१२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (या) विद्यासुशिक्षायुक्ता अध्यापिकोपदेशिका वा (शर्धाय) बलाय (मारुताय) मरुतां मनुष्याणामस्मै (स्वभानवे) स्वकीयप्रज्ञाप्रदीप्तये (श्रवः) श्रवणम् (अमृत्यु) अविद्यमानं मृत्युभयं यस्मिन् (धुक्षत) प्रपूरयेत् (या) विदुषी स्त्री (मृळीके) सुखकारके व्यवहारे (मरुताम्) मनुष्याणाम् (तुराणाम्) शीघ्रकारिणाम् (या) शिक्षिका (सुम्नैः) सुखैः (एवयावरी) दुःखनिवारिका ॥१२॥
भावार्थभाषाः - ता एव स्त्रियो धन्याः सन्ति याः स्वापत्यानि विद्यासुशिक्षायुक्तानि कर्तुंर् कारयितुं च सततं प्रयतन्ते ॥१२॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या स्रिया आपल्या संतानांना विद्या व सुंदर शिक्षणाने युक्त करण्याचा व करविण्याचा प्रयत्न करतात त्याच स्त्रिया धन्य असतात. ॥ १२ ॥