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बाध॑से॒ जना॑न्वृष॒भेव॑ म॒न्युना॒ घृषौ॑ मी॒ळ्ह ऋ॑चीषम। अ॒स्माकं॑ बोध्यवि॒ता म॑हाध॒ने त॒नूष्व॒प्सु सूर्ये॑ ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

bādhase janān vṛṣabheva manyunā ghṛṣau mīḻha ṛcīṣama | asmākam bodhy avitā mahādhane tanūṣv apsu sūrye ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

बाध॑से। जना॑न्। वृ॒ष॒भाऽइ॑व। म॒न्युना॑। घृषौ॑। मी॒ळ्हे। ऋ॒ची॒ष॒म॒। अ॒स्माक॑म्। बो॒धि॒। अ॒वि॒ता। म॒हा॒ऽध॒ने। त॒नूषु॑। अ॒प्ऽसु। सूर्ये॑ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:46» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:27» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजा और प्रजाजन किसकी प्रतिज्ञा करें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (ऋचीषम) ऋचा के सदृश प्रशंसा करने योग्य अत्यन्त ऐश्वर्य से युक्त राजन् ! जो (मन्युना) क्रोध से (वृषभेव) बलयुक्त बैल जैसे वैसे (घृषौ) दुष्टों के घर्षण में (मीळ्हे) सङ्ग्राम में (जनान्) मनुष्यों की बाधा करते हैं, जिससे आप उनकी (बाधसे) बाधा करते हो और (अस्माकम्) हम लोगों के (तनूषु) शरीरों में और (अप्सु) प्राणों में (महाधने) सङ्ग्राम में (अविता) रक्षा करनेवाले हुए (सूर्य्ये) सूर्य्य में प्रकाश जैसे वैसे हम लोगों को (बोधि) जनाइये इससे आप आदर करने योग्य हैं ॥४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे राजन् ! हम लोग दुष्टों के बाधने के लिये और सङ्ग्राम में अपने लोगों की रक्षा के लिये आपका स्वीकार करें तथा आप हम लोगों को सत्य न्यायकृत्य सदा ही जनाइये ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजप्रजाजनाः किं प्रतिजानीरन्नित्याह ॥

अन्वय:

हे ऋचीषमेन्द्र राजन् ! ये मन्युना वृषभेव घृषौ मीळ्हे जनान् बाधन्ते यतस्त्वं तान् बाधसेऽस्माकं तनूष्वप्सु महाधनेऽविता सन्त्सूर्य्ये प्रकाश इवाऽस्मान् बोधि तस्माद्भवान् माननीयोऽस्ति ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (बाधसे) (जनान्) (वृषभेव) बलिष्ठवृषभवत् (मन्युना) क्रोधेन (घृषौ) दुष्टानां घर्षणे (मीळ्हे) सङ्ग्रामे (ऋचीषम) ऋचा तुल्यप्रशंसनीय (अस्माकम्) (बोधि) विज्ञापय (अविता) (महाधने) सङ्ग्रामे (तनूषु) शरीरेषु (अप्सु) प्राणेषु (सूर्ये) सवितरि ॥४॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। हे राजन् ! वयं दुष्टानां बाधनाय सङ्ग्रामेऽस्मदीयानां रक्षणाय त्वां स्वीकुर्मस्त्वमस्मान् सत्यन्यायकृत्यानि सदैव बोधयेः ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे राजा! आम्ही दुष्टांना बाधा पोहचविण्यासाठी व युद्धात आमच्या लोकांच्या रक्षणासाठी तुझा स्वीकार करावा व तू आम्हाला सदैव खरा न्याय द्यावास. ॥ ४ ॥