सखा॑यो॒ ब्रह्म॑वाह॒सेऽर्च॑त॒ प्र च॑ गायत। स हि नः॒ प्रम॑तिर्म॒ही ॥४॥
sakhāyo brahmavāhase rcata pra ca gāyata | sa hi naḥ pramatir mahī ||
सखा॑यः। ब्रह्म॑ऽवाहसे। अर्च॑त। प्र। च॒। गा॒य॒त॒। सः। हि। नः॒। प्रऽम॑तिः। म॒ही ॥४॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर मनुष्यों को किसका सत्कार करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्मनुष्यैः कः सत्कर्त्तव्य इत्याह ॥
हे सखायो यूयं ब्रह्मवाहसे यं प्रार्चत गायत च येन नः प्रमतिर्मही च दीयते स हि परमात्मा विद्वांश्चाऽस्माभिरुपास्यः सेवनीयश्चास्ति ॥४॥