इ॒मा उ॑ त्वा सु॒तेसु॑ते॒ नक्ष॑न्ते गिर्वणो॒ गिरः॑। व॒त्सं गावो॒ न धे॒नवः॑ ॥२८॥
imā u tvā sute-sute nakṣante girvaṇo giraḥ | vatsaṁ gāvo na dhenavaḥ ||
इ॒माः। ऊँ॒ इति॑। त्वा॒। सु॒तेऽसु॑ते। नक्ष॑न्ते। गि॒र्व॒णः॒। गिरः॑। व॒त्सम्। गावः॑। न। धे॒नवः॑ ॥२८॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब किसके लिये कहाँ प्राप्त होवे, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ कस्मै क्व किं प्राप्नुयादित्याह ॥
हे गिर्वण ! सुतेसुतेऽस्मिञ्जगतीमा गिरो वत्सं धेनवो गावो न त्वा नक्षन्ते ता उ अस्मानपि प्राप्नुवन्तु ॥२८॥