स म॑न्दस्वा॒ ह्यन्ध॑सो॒ राध॑से त॒न्वा॑ म॒हे। न स्तो॒तारं॑ नि॒दे क॑रः ॥२७॥
sa mandasvā hy andhaso rādhase tanvā mahe | na stotāraṁ nide karaḥ ||
सः। म॒न्द॒स्व॒। हि। अन्ध॑सः। राध॑से। त॒न्वा॑। म॒हे। न। स्तो॒तार॑म्। नि॒दे। क॒रः॒ ॥२७॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर वह राजा कैसा होवे, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः स राजा कीदृग्भवेदित्याह ॥
हे विद्वन् ! हि त्वं तन्वा महे राधसेऽन्धसो मन्दस्वा निदे स्तोतारं न करस्तस्मात् स भवाञ्जनप्रियोऽस्ति ॥२७॥