अभू॑रु वीर गिर्वणो म॒हाँ इ॑न्द्र॒ धने॑ हि॒ते। भरे॑ वितन्त॒साय्यः॑ ॥१॥
abhūr u vīra girvaṇo mahām̐ indra dhane hite | bhare vitantasāyyaḥ ||
अभूः॑। ऊँ॒ इति॑। वी॒र॒। गि॒र्व॒णः॒। म॒हान्। इ॒न्द्र॒। धने॑। हि॒ते। भरे॑। वि॒त॒न्त॒साय्यः॑ ॥१३॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर वह राजा क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः स राजा किं कुर्य्यादित्याह ॥
हे गिर्वणो वीरेन्द्र ! त्वं महान् वितन्तसाय्यः सन् हिते धन उ भरे विजेताऽभूः ॥१३॥