य आन॑यत्परा॒वतः॒ सुनी॑ती तु॒र्वशं॒ यदु॑म्। इन्द्रः॒ स नो॒ युवा॒ सखा॑ ॥१॥
ya ānayat parāvataḥ sunītī turvaśaṁ yadum | indraḥ sa no yuvā sakhā ||
यः। आ। अन॑यत्। प॒रा॒ऽवतः॑। सुऽनी॑ती। तु॒र्वश॑म्। यदु॑म्। इन्द्रः॑। सः। नः॒। युवा॑। सखा॑ ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब तेंतीस ऋचावाले पैंतालीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में राजा क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ राजा किं कुर्यादित्याह ॥
हे मनुष्या ! यो युवेन्द्रः सुनीती परावतस्तुर्वशं यदुमाऽनयत् स नः सखा भवतु ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात राजनीती, धन जिंकणारे, मैत्री, वेद जाणणारे, ऐश्वर्याने युक्त, दाता, कारागीर व स्वामी यांच्या कृत्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.