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द्यु॒मत्त॑मं॒ दक्षं॑ धेह्य॒स्मे सेधा॒ जना॑नां पू॒र्वीररा॑तीः। वर्षी॑यो॒ वयः॑ कृणुहि॒ शची॑भि॒र्धन॑स्य सा॒ताव॒स्माँ अ॑विड्ढि ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

dyumattamaṁ dakṣaṁ dhehy asme sedhā janānām pūrvīr arātīḥ | varṣīyo vayaḥ kṛṇuhi śacībhir dhanasya sātāv asmām̐ aviḍḍhi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

द्यु॒मत्ऽत॑मम्। दक्ष॑म्। धे॒हि॒। अ॒स्मे इति॑। सेध॑। जना॑नाम्। पू॒र्वीः। अरा॑तीः। वर्षी॑यः। वयः॑। कृ॒णु॒हि॒। शची॑भिः। धन॑स्य। सा॒तौ। अ॒स्मान्। अ॒वि॒ड्ढि॒ ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:44» मन्त्र:9 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:17» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राजा और प्रजाजन का हित कैसे करें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! आप (शचीभिः) बुद्धियों वा कर्मों वा प्रजाओं के साथ (अस्मे) हम लोगों में (द्युमत्तमम्) प्रशंसित अत्यन्त विद्या के प्रकाश से युक्त (दक्षम्) बल को (धेहि) धारण करिये और कार्य्य को (सेधा) सिद्ध कीजिये और (जनानाम्) मनुष्यों की (पूर्वीः) प्राचीन (अरातीः) नहीं दान करने की क्रियाओं को दूर कीजिये तथा (वर्षीयः) अतिशय श्रेष्ठ (वयः) सुन्दर अवस्था को (कृणुहि) करिये और (धनस्य) धन के (सातौ) संविभाग में (अस्मान्) हम लोगों का (अविड्ढि) प्रवेश कराइये ॥९॥
भावार्थभाषाः - प्रजाजनों को राजा की ऐसी प्रार्थना करनी चाहिये कि हे राजन् ! आप जो हम लोगों को बलयुक्त, कृपणता से रहित और ब्रह्मचर्य्य आदि से दीर्घ अवस्थावाले पुरुषार्थी और सब प्रकार से रक्षा करके भयरहित करके धर्म्म, अर्थ, काम और मोक्ष के साधन में प्रवेश कराइये तो आपकी हम लोग सर्वदा वृद्धि करें ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजप्रजाजनाः परस्परस्य हितं कथं कुर्य्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे राजन् ! त्वं शचीभिरस्मे द्युमत्तमं दक्षं धेहि कार्य्यं सेधा जनानां पूर्वीररातीर्निवर्तय वर्षीयो वयः कृणुहि धनस्य सातावस्मानविड्ढि ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (द्युमत्तमम्) प्रशस्ता द्यौर्विद्याप्रकाशो विद्यते यस्य यस्मिंस्तदतिशयितम् (दक्षम्) बलम् (धेहि) (अस्मे) अस्मासु (सेधा) साध्नुहि। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (जनानाम्) मनुष्याणाम् (पूर्वीः) प्राचीनाः (अरातीः) अदानक्रियाः (वर्षीयः) अतिशयेन श्रेष्ठम् (वयः) कमनीयमायुः (कृणुहि) (शचीभिः) प्रज्ञाभिः कर्मभिर्वा प्रजाभिः सह (धनस्य) (सातौ) संविभागे (अस्मान्) (अविड्ढि) प्रवेशय ॥९॥
भावार्थभाषाः - प्रजाजनै राजैवं प्रार्थनीयो हे राजंस्त्वं यद्यस्मान् बलवत्तमान् कृपणतारहितान् ब्रह्मचर्य्यादिना दीर्घायुषः पुरुषार्थिनः सर्वतो रक्षयित्वाऽभयान् कृत्वा धर्मार्थकाममोक्षसाधने प्रवेशयेस्तर्हि भवन्तं वयं सर्वदा वर्धयेम ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - प्रजाजनांनी राजाला अशी प्रार्थना करावी की हे राजा ! तू आम्हाला बलवान, उदार, ब्रह्मचर्य इत्यादीद्वारे दीर्घायुषी, पुरुषार्थी, निर्भय करून सर्व प्रकारे रक्षण कर व धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष यात प्रवेश कर व आम्ही सर्वजण नेहमी तुझी उन्नती करू. ॥ ९ ॥