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यः श॒ग्मस्तु॑विशग्म ते रा॒यो दा॒मा म॑ती॒नाम्। सोमः॑ सु॒तः स इ॑न्द्र॒ तेऽस्ति॑ स्वधापते॒ मदः॑ ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yaḥ śagmas tuviśagma te rāyo dāmā matīnām | somaḥ sutaḥ sa indra te sti svadhāpate madaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। श॒ग्मः। तु॒वि॒ऽश॒ग्म॒। ते॒। रा॒यः। दा॒मा। म॒ती॒नाम्। सोमः॑। सु॒तः। सः। इ॒न्द्र॒। ते॒। अस्ति॑। स्व॒धा॒ऽप॒ते॒ मदः॑ ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:44» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:16» मन्त्र:2 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (तुविशग्म) अनेक प्रकार के सुखोंवाले (स्वधापते) अन्न आदिकों के स्वामिन् (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य्य से युक्त ! (यः) जो (ते) आपका (शग्मः) सुखयुक्त (रायः) धनों को (मतीनाम्) विचारशीलों को (दामा) देने योग्य (सुतः) उत्पन्न किया गया (मदः) आनन्दकारक (सोमः) ऐश्वर्य्यों का समूह (अस्ति) है (सः) वह (ते) आपके धर्म्म की कीर्ति करनेवाला हो ॥२॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य धन आदि ऐश्वर्य्य से धर्म्म और विद्या की उन्नति करते हैं, वे ही बहुत सुख और धनवाले होते हैं ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किं कुर्य्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे तुविशग्म स्वधापत इन्द्र ! यस्ते शग्मो रायो मतीनां दामा सुतो मदः सोमोऽस्ति स ते धर्मकीर्तिङ्करोतु ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) (शग्मः) शग्मं सुखं विद्यते यस्य सः। अर्शआदिभ्योऽच्। शग्ममिति सुखनाम। (निघं०३.६) (तुविशग्म) तुवि बहुविधानि शग्मानि सुखानि यस्य तत्सम्बुद्धौ (ते) तव (रायः) धनानि (दामा) दातुं योग्यः (मतीनाम्) मननशीलानाम् (सोमः) ऐश्वर्य्यसमूहः (सुतः) निष्पन्नः प्राप्तः (सः) (इन्द्र) महैश्वर्य्ययुक्त (ते) तव (अस्ति) (स्वधापते) अन्नादीनां स्वामिन् (मदः) आनन्दकरः ॥२॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या धनाद्यैश्वर्येण धर्मविद्ये उन्नयन्ति त एव बहुसुखधना भवन्ति ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे धन इत्यादी ऐश्वर्याद्वारे धर्म व विद्येची उन्नती करतात तीच अत्यंत सुखी व धनवान असतात. ॥ २ ॥