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अध्व॑र्यो वीर॒ प्र म॒हे सु॒ताना॒मिन्द्रा॑य भर॒ स ह्य॑स्य॒ राजा॑। यः पू॒र्व्याभि॑रु॒त नूत॑नाभिर्गी॒र्भिर्वा॑वृ॒धे गृ॑ण॒तामृषी॑णाम् ॥१३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

adhvaryo vīra pra mahe sutānām indrāya bhara sa hy asya rājā | yaḥ pūrvyābhir uta nūtanābhir gīrbhir vāvṛdhe gṛṇatām ṛṣīṇām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अध्व॑र्यो॒ इति॑। वी॒र॒। प्र। म॒हे। सु॒ताना॑म्। इन्द्रा॑य। भ॒र॒। सः। हि। अ॒स्य॒। राजा॑। यः। पू॒र्व्याभिः॑। उ॒त। नूत॑नाभिः। गीः॒ऽभिः। व॒वृ॒धे। गृ॒ण॒ताम्। ऋषी॑णाम् ॥१३॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:44» मन्त्र:13 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:18» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:13


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

कौन इस पृथिवी पर राजा होने के योग्य है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अध्वर्यो) नहीं हिंसा करनेवाले (वीर) दुष्टों की हिंसा करनेवाले ! (यः) जो (राजा) राजा (गृणताम्) प्रशंसा करनेवाले (ऋषीणाम्) मन्त्रों के अर्थ जाननेवालों की (पूर्व्याभिः) पूर्व जनों से सेवित (उत) भी (नूतनाभिः) नवीन वर्त्तमान (गीर्भिः) वाणियों से (वावृधे) वृद्धि को प्राप्त होता है (सः, हि) वही (अस्य) इस राज्य का राजा होने को योग्य हो, वैसे आप (सुतानाम्) उत्पन्न हुए पदार्थों के (महे) बड़े (इन्द्राय) अत्यन्त ऐश्वर्य्य के लिये इन को (प्र, भर) धारण करिये ॥१३॥
भावार्थभाषाः - वही राज्य पालन करने और बढ़ाने को समर्थ होता है, जो यथार्थवक्ताओं के सहित, उत्तम प्रकार शिक्षित और न्यायेश होवे और वही विद्वान् होता है, जो शिष्ट जनों से नित्य उपदेश सुनता है ॥१३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

कोऽत्र राजा भवितुं योग्य इत्याह ॥

अन्वय:

हे अध्वर्यो वीर ! यो राजा गृणतामृषीणां पूर्व्याभिरुत नूतनाभिर्गीर्भिर्वावृधे स ह्यस्य राष्ट्रस्य राजा भवितुं योग्यस्तथा त्वं सुतानां मह इन्द्रायैतान् प्र भर ॥१३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अध्वर्यो) अहिंसक (वीर) दुष्टानां हिंसक (प्र) (महे) महते (सुतानाम्) निष्पन्नानां पदार्थानाम् (इन्द्राय) परमैश्वर्याय (भर) धर (सः) (हि) (अस्य) (राजा) (यः) (पूर्व्याभिः) पूर्वैः सेविताभिः (उत) अपि (नूतनाभिः) नवीनाभिर्वर्तमानाभिः (गीर्भिः) (वावृधे) वर्धते। अत्र तुजादीनामित्यभ्यासदैर्घ्यम्। (गृणताम्) प्रशंसकानाम् (ऋषीणाम्) मन्त्रार्थविदाम् ॥१३॥
भावार्थभाषाः - स एव राज्यं पालयितुं वर्धयितुं च शक्नोति य आप्तैस्सहितः सुशिक्षितो न्यायेशो भवत्स एव विद्वान् भवति यः शिष्टेभ्यो नित्यमुपदेशं शृणोति ॥१३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - भावार्थ- जो विद्वानांकडून उत्तम प्रकारे शिक्षित, न्यायी व विद्वान होतो व जो सभ्य लोकांचा उपदेश ऐकतो तोच राज्यपालन करू शकतो व राज्य वाढवू शकतो. ॥ १३ ॥