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यस्य॑ तीव्र॒सुतं॒ मदं॒ मध्य॒मन्तं॑ च॒ रक्ष॑से। अ॒यं स सोम॑ इन्द्र ते सु॒तः पिब॑ ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yasya tīvrasutam madam madhyam antaṁ ca rakṣase | ayaṁ sa soma indra te sutaḥ piba ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यस्य॑। ती॒व्र॒ऽसुत॑म्। मद॑म्। मध्य॑म्। अन्त॑म्। च॒। रक्ष॑से। अ॒यम्। सः। सोमः॑। इ॒न्द्र॒। ते॒। सु॒तः। पिब॑ ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:43» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:15» मन्त्र:2 | मण्डल:6» अनुवाक:3» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजा क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) बल के देनेवाले (यस्य) जिसके (तीव्रसुतम्) तेजस्वियों से कर्म्मों द्वारा उत्पन्न किये (मदम्) आनन्द के देनेवाले (मध्यम्) मध्य में हुए (अन्तम्) और अन्त में वर्त्तमान की (च) भी (रक्षसे) रक्षा करते हो (सः) वह (अयम्) यह (सोमः) उत्तम ओषधियों का रस (ते) आपके लिये (सुतः) उत्पन्न किया उसका आप (पिब) पान करिये ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे विद्यायुक्त राजन् ! आप वैसी ही ओषधियों को प्रकट करिये जिससे सब का सुख बढ़े ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजा किं कुर्य्यादित्याह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! त्वं यस्य तीव्रसुतं मदं मध्यमन्तं च रक्षसे सोऽयं सोमस्ते सुतस्तं त्वं पिब ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्य) (तीव्रसुतम्) तीव्रैस्तेजस्विभिः कर्मभिर्निष्पादितम् (मदम्) आनन्दकरम् (मध्यम्) मध्ये भवम् (अन्तम्) अवसानस्थम् (च) (रक्षसे) (अयम्) (सः) (सोमः) उत्तमौषधिरसः (इन्द्र) बलप्रद (ते) तुभ्यम् (सुतः) निष्पादितः (पिब) ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वन् राजँस्त्वं तादृशान्येवौषधानि प्रकटीकुरु यैः सर्वेषां सुखं वर्धेत ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्यायुक्त राजा ! तू अशीच औषधी निष्पादित कर. ॥ २ ॥