वर्धा॒द्यं य॒ज्ञ उ॒त सोम॒ इन्द्रं॒ वर्धा॒द्ब्रह्म॒ गिर॑ उ॒क्था च॒ मन्म॑। वर्धाहै॑नमु॒षसो॒ याम॑न्न॒क्तोर्वर्धा॒न्मासाः॑ श॒रदो॒ द्याव॒ इन्द्र॑म् ॥४॥
vardhād yaṁ yajña uta soma indraṁ vardhād brahma gira ukthā ca manma | vardhāhainam uṣaso yāmann aktor vardhān māsāḥ śarado dyāva indram ||
वर्धा॑त्। यम्। य॒ज्ञः। उ॒त। सोमः॑। इन्द्र॑म्। वर्धा॑त्। ब्रह्म॑। गिरः॑। उ॒क्था। च॒। मन्म॑। वर्ध॑। अह॑। ए॒न॒म्। उ॒षसः॑। याम॑न्। अ॒क्तोः। वर्धा॑न्। मासाः॑। श॒रदः॑। द्यावः॑। इन्द्र॑म् ॥४॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब मनुष्य क्या बढ़ावें, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ मनुष्याः किं वर्धयेयुरित्याह ॥
हे मनुष्या ! यमिन्द्रं यज्ञ उत सोमो वर्धाद् ब्रह्म वर्धादुक्था मन्म गिरश्च वर्धाहैनमुषसोऽक्तोर्यामन् मासाः शरदो द्यावश्चेन्द्रं वर्धान् तेऽस्मान् वर्धयन्तु ॥४॥