अनु॒ प्र ये॑जे॒ जन॒ ओजो॑ अस्य स॒त्रा द॑धिरे॒ अनु॑ वी॒र्या॑य। स्यू॒म॒गृभे॒ दुध॒येऽर्व॑ते च॒ क्रतुं॑ वृञ्ज॒न्त्यपि॑ वृत्र॒हत्ये॑ ॥२॥
anu pra yeje jana ojo asya satrā dadhire anu vīryāya | syūmagṛbhe dudhaye rvate ca kratuṁ vṛñjanty api vṛtrahatye ||
अनु॑। प्र। ये॒जे॒। जनः॑। ओजः॑। अ॒स्य॒। स॒त्रा। द॒धि॒रे॒। अनु॑। वी॒र्या॑य। स्यू॒म॒ऽगृभे॑। दुध॑ये। अर्व॑ते। च॒। क्रतु॑म्। वृ॒ञ्ज॒न्ति॒। अपि॑। वृ॒त्र॒ऽहत्ये॑ ॥२॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर मनुष्य कैसा वर्त्ताव करें, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्मनुष्याः कथं वर्त्तेरन्नित्याह ॥
हे राजन् ! यो जनो यथा शूरवीरा अस्य सत्रौजो दधिरे वृत्रहत्ये स्यूमगृभे वीर्याय क्रतुमनु दधिरे दुधयेऽर्वते च क्रतुमपि वृञ्जन्ति तथाऽनु प्र येजे तं तांश्च त्वं गृहाण हिंसकान् वर्जय ॥२॥