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स॒त्रा मदा॑स॒स्तव॑ वि॒श्वज॑न्याः स॒त्रा रायोऽध॒ ये पार्थि॑वासः। स॒त्रा वाजा॑नामभवो विभ॒क्ता यद्दे॒वेषु॑ धा॒रय॑था असु॒र्य॑म् ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

satrā madāsas tava viśvajanyāḥ satrā rāyo dha ye pārthivāsaḥ | satrā vājānām abhavo vibhaktā yad deveṣu dhārayathā asuryam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒त्रा। मदा॑सः। तव॑। वि॒श्वऽज॑न्याः। स॒त्रा। रायः॑। अध॑। ये। पार्थि॑वासः। स॒त्रा। वाजा॑नाम्। अ॒भ॒वः॒। वि॒ऽभ॒क्ता। यत्। दे॒वेषु॑। धा॒रय॑थाः। असु॒र्य॑म् ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:36» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:8» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:3» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब पाँच ऋचावाले छत्तीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में राजा कैसा होकर क्या धारण करे, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! (तव) आपके (ये) जो (विश्वजन्याः) सम्पूर्ण जन्य सुख जिनमें वे (सत्रा) सत्य (मदासः) आनन्द देनेवाले और (सत्रा) सत्य (रायः) धन (सत्रा) सत्य (पार्थिवासः) पृथिवी में विदित और (वाजानाम्) अन्न आदिकों के सत्य (विभक्ता) विभागों को प्राप्त हुए हैं उनके आप धारण करनेवाले (अभवः) हूजिये (अध) इसके अनन्तर (यत्) जो (देवेषु) विद्वानों में (असुर्यम्) अविद्वानों में हुआ है, उसको (धारयथाः) धारण कराइये ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो इस संसार में बुद्धि और आनन्द के बढ़ानेवाले, विद्या और धनादि से युक्त और विद्वानों के साथ सत्सङ्ग करनेवाले हैं, उनको धारण करके सत्य और असत्य के विभाग करनेवाले हूजिये ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजा कीदृशो भूत्वा किं धरेदित्याह ॥

अन्वय:

हे राजन् ! तव ये विश्वजन्याः सत्रा मदासस्सत्रा रायस्सत्रा पार्थिवासो वाजानां सत्रा विभक्ता सन्ति तेषां त्वं धारकोऽभवोऽध यद्देवेष्वसुर्यमस्ति तद्धारयथाः ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सत्रा) सत्याः (मदासः) आनन्दकाः (तव) (विश्वजन्या) विश्वानि जन्यानि सुखानि येषु ते (सत्रा) सत्यानि (रायः) धनानि (अध) अथ (ये) (पार्थिवासः) पृथिव्यां विदिताः (सत्रा) सत्याः (वाजानाम्) अन्नादीनाम् (अभवः) भव (विभक्ता) विभागं प्राप्ताः (यत्) (देवेषु) विद्वत्सु (धारयथाः) (असुर्यम्) असुरेष्वविद्वत्सु भवम् ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! येऽत्र बुद्ध्यानन्दवर्धका विद्याधनादियोगाः विद्वत्सङ्गाः सन्ति तान् धृत्वा सत्याऽसत्योर्विभाजका भवन्तु ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात इंद्र, विद्वान, राजा यांच्या कृत्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! या जगात जे बुद्धी व आनंदवर्धक, विद्या व धन इत्यादींनी युक्त व विद्वानांबरोबरच सत्संग करणारे असतात त्यांच्या साह्याने सत्य व असत्याचा भेद जाणा. ॥ १ ॥