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धायो॑भिर्वा॒ यो युज्ये॑भिर॒र्कैर्वि॒द्युन्न द॑विद्यो॒त्स्वेभिः॒ शुष्मैः॑। शर्धो॑ वा॒ यो म॒रुतां॑ त॒तक्ष॑ ऋ॒भुर्न त्वे॒षो र॑भसा॒नो अ॑द्यौत् ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

dhāyobhir vā yo yujyebhir arkair vidyun na davidyot svebhiḥ śuṣmaiḥ | śardho vā yo marutāṁ tatakṣa ṛbhur na tveṣo rabhasāno adyaut ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

धायः॑ऽभिः। वा॒। यः। युज्ये॑भिः। अ॒र्कैः। वि॒द्युत्। न। द॒वि॒द्यो॒त्। स्वेभिः॑। शुष्मैः॑। शर्धः॑। वा॒। यः। म॒रुता॑म्। त॒तक्ष॑। ऋ॒भुः। न। त्वे॒षः। र॒भ॒सा॒नः। अ॒द्यौ॒त् ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:3» मन्त्र:8 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:4» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:1» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब कैसा मनुष्य राजा होने के योग्य है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! (यः) जो (धायोभिः) धारण करनेवालों वा गुणों से और (युज्येभिः) युक्त करने योग्य (स्वेभिः) अपने (शुष्मैः) बलों और गुणों से (वा) वा (विद्युत्) बिजुली (न) जैसे वैसे (स्वेभिः) अपने (अर्कैः) सत्कारों योग्य कारणों से (दविद्योत्) प्रकाशित होता है (यः) जो (वा) वा (मरुताम्) मनुष्यों के (शर्धः) बल को (ऋभुः) बुद्धिमान् जन (न) जैसे वैसे (ततक्ष) तीक्ष्ण करता है तथा (त्वेषः) प्रकाशयुक्त और (रभसानः) वेगयुक्त जैसे (अद्यौत्) प्रकाशित होता है, वही राजा संस्थापित करने योग्य है ॥८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! जो बिजुली के सदृश प्रतापी, बलवान्, पदार्थों के संयोग और वियोग की विद्या में चतुर, बुद्धिमान्, विद्वान्, धर्मात्मा, इन्द्रियों को जीतनेवाला और प्रजापालनप्रिय क्षत्रिय होवे, वही राजा होने के योग्य होवे ॥८॥ इस सूक्त में अग्नि और विद्वान् के गुणवर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह तीसरा सूक्त और चौथा वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ कीदृशो नरो राजा भवितुं योग्यः स्यादित्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वन् ! यो धायोभिर्युज्येभिः स्वेभिः शुष्मैर्गुणैर्वा विद्युन्न स्वेभिरर्कैर्दविद्योद्यो वा मरुतां शर्ध ऋभुर्न ततक्ष त्वेषो रभसानो नाद्यौत्स एव राजा संस्थापनीयः ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (धायोभिः) धारकैर्गुणैर्वा (वा) (यः) (युज्येभिः) योक्तव्यैः (अर्कैः) अर्चनीयैस्सत्कारहेतुभिः (विद्युत्) (न) इव (दविद्योत्) प्रकाशते (स्वेभिः) स्वकीयैः (शुष्मैः) बलैः (शर्धः) बलम् (वा) (यः) (मरुताम्) मनुष्याणाम् (ततक्ष) तीक्ष्णीकरोति (ऋभुः) मेधावी (न) इव (त्वेषः) देदीप्यमानः (रभसानः) वेगवान् (अद्यौत्) प्रकाशते ॥८॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! यो विद्युद्वत्प्रतापी बलिष्ठः संयोग-वियोगविद्यायां विचक्षणो मेधावी विद्वान् धर्म्मात्मा जितेन्द्रियः पितृवत्प्रजापालनप्रियः क्षत्रियः स्यात्स एव राजा भवितुमर्हेत् ॥८॥ अत्राग्निविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति तृतीयं सूक्तं चतुर्थो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - भावार्थ ः या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो, जो विद्युल्लतेप्रमाणे पराक्रमी, बलवान, पदार्थांच्या संयोग वियोग विद्येत चतुर, बुद्धिमान, विद्वान, धर्मात्मा, जितेन्द्रिय, प्रजापालप्रिय क्षत्रिय असेल तर तो राजा होण्यायोग्य असतो. ॥ ८ ॥