किम॑स्य॒ मदे॒ किम्व॑स्य पी॒ताविन्द्रः॒ किम॑स्य स॒ख्ये च॑कार। रणा॑ वा॒ ये नि॒षदि॒ किं ते अ॑स्य पु॒रा वि॑विद्रे॒ किमु॒ नूत॑नासः ॥१॥
kim asya made kim v asya pītāv indraḥ kim asya sakhye cakāra | raṇā vā ye niṣadi kiṁ te asya purā vividre kim u nūtanāsaḥ ||
किम्। अ॒स्य॒। मदे॑। किम्। ऊँ॒ इति॑। अ॒स्य॒। पी॒तौ। इन्द्रः॑। किम्। अ॒स्य॒। स॒ख्ये। च॒का॒र॒। रणाः॑। वा॒। ये। नि॒ऽसदि॑। किम्। ते। अ॒स्य॒। पु॒रा। वि॒वि॒द्रे॒। किम्। ऊँ॒ इति॑। नूत॑नासः ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब आठ ऋचावाले सत्ताईसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में प्रश्नों को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथात्र प्रश्नानाह ॥
हे वैद्यराजेन्द्रोऽस्य मदे किं चकार। अस्य पीतौ किमु चकारास्य सख्ये किं चकार ये वा निषदि रणा अस्य पुरा किं विविद्रे किमु नूतनासो विविद्रे ते किमनुतिष्ठन्ति ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात इंद्र, ईश्वर, राजा व प्रजेच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.