अ॒हं च॒न तत्सू॒रिभि॑रानश्यां॒ तव॒ ज्याय॑ इन्द्र सु॒म्नमोजः॑। त्वया॒ यत्स्तव॑न्ते सधवीर वी॒रास्त्रि॒वरू॑थेन॒ नहु॑षा शविष्ठ ॥७॥
ahaṁ cana tat sūribhir ānaśyāṁ tava jyāya indra sumnam ojaḥ | tvayā yat stavante sadhavīra vīrās trivarūthena nahuṣā śaviṣṭha ||
अ॒हम्। च॒न। तत्। सू॒रिऽभिः॑। आ॒न॒श्या॒म्। तव॑। ज्यायः॑। इ॒न्द्र॒। सु॒म्नम्। ओजः॑। त्वया॑। यत्। स्तव॑न्ते। स॒ध॒ऽवी॒र॒। वी॒राः। त्रि॒ऽवरू॑थेन। नहु॑षा। श॒वि॒ष्ठ॒ ॥७॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
हे शविष्ठ सधवीरेन्द्र ! वीरा नहुषा विद्वांसो यत्स्तवन्ते तत्त्रिवरूथेन त्वया सूरिभिश्च सहाऽहमानश्यां चनाऽपि तव यज्ज्यायः सुम्नमोजोऽस्ति तदानश्याम् ॥७॥