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ग॒म्भी॒रेण॑ न उ॒रुणा॑मत्रि॒न्प्रेषो य॑न्धि सुतपाव॒न्वाजा॑न्। स्था ऊ॒ षु ऊ॒र्ध्व ऊ॒ती अरि॑षण्यन्न॒क्तोर्व्यु॑ष्टौ॒ परि॑तक्म्यायाम् ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

gambhīreṇa na uruṇāmatrin preṣo yandhi sutapāvan vājān | sthā ū ṣu ūrdhva ūtī ariṣaṇyann aktor vyuṣṭau paritakmyāyām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ग॒म्भी॒रेण॑। नः॒। उ॒रुणा॑। अ॒म॒त्रि॒न्। प्र। इ॒षः। य॒न्धि॒। सु॒त॒ऽपा॒व॒न्। वाजा॑न्। स्थाः। ऊँ॒ इति॑। सु। ऊ॒र्ध्वः। ऊ॒ती। अरि॑षण्यन्। अ॒क्तोः। विऽउ॑ष्टौ। परि॑ऽतक्म्यायाम् ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:24» मन्त्र:9 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:18» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:3» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उस ही विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अमत्रिन्) बहुत बल से युक्त और (सुतपावन्) उत्पन्न पदार्थों के पवित्र करनेवाले आप (गम्भीरेण) गम्भीर और (उरुणा) बहुत से (नः) हम लोगों को (इषः) अन्न आदिक (यन्धि) दीजिये (उ) और (ऊती) रक्षण आदि क्रिया से (ऊर्ध्वः) ऊपर वर्तमान (अरिषण्यन्) नहीं हिंसा करते हुए (अक्तोः) रात्रि से (व्युष्टौ) प्रभातकाल में और (परितक्म्यायाम्) रात्रि में (वाजान्) विज्ञान आदिकों को (सु, प्र) अति उत्तम प्रकार (स्थाः) स्थित हूजिये ॥९॥
भावार्थभाषाः - जो यम और नियमों से युक्त हुए कार्य की सिद्धि के लिये दिन-रात्रि प्रयत्न करें, वे उत्तम होते हैं ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अमत्रिन्त्सुतपावंस्त्वं गम्भीरेणोरुणा न इषो यन्धि। उ ऊती उर्ध्वोऽरिषण्यन्नक्तोर्व्युष्टौ परितक्म्यायां वाजान् सुप्र स्थाः ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (गम्भीरेण) अगाधेन (नः) अस्मभ्यम् (उरुणा) बहुना (अमत्रिन्) बहुबलयुक्त (प्र) (इषः) अन्नादीन् (यन्धि) नियच्छ (सुतपावन्) यः सुतान्निष्पन्नान् पदार्थान् पुनाति (वाजान्) विज्ञानादीनि (स्थाः) तिष्ठेः (उ) (सु) (ऊर्ध्वः) (ऊती) रक्षणाद्यायाः (अरिषण्यन्) अहिंसयन् (अक्तोः) रात्रेः (व्युष्टौ) प्रभाते (परितक्म्यायाम्) निशि ॥९॥
भावार्थभाषाः - ये यमनियमान्विताः कार्यसिद्धयेऽहर्निशं प्रयत्नमातिष्ठेयुस्त उत्कृष्टा जायन्ते ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे यमनियमांचे पालन करून कार्य पूर्ण व्हावे यासाठी दिवसरात्र प्रयत्न करतात ते उत्कृष्ट असतात. ॥ ९ ॥