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स म॑न्दस्वा॒ ह्यनु॒ जोष॑मुग्र॒ प्र त्वा॑ य॒ज्ञास॑ इ॒मे अ॑श्नुवन्तु। प्रेमे हवा॑सः पुरुहू॒तम॒स्मे आ त्वे॒यं धीरव॑स इन्द्र यम्याः ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa mandasvā hy anu joṣam ugra pra tvā yajñāsa ime aśnuvantu | preme havāsaḥ puruhūtam asme ā tveyaṁ dhīr avasa indra yamyāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। म॒न्द॒स्व॒। हि। अनु॑। जोष॑म्। उ॒ग्र॒। प्र। त्वा॒। य॒ज्ञासः॑। इ॒मे। अ॒श्नु॒व॒न्तु॒। प्र। इ॒मे। हवा॑सः। पु॒रु॒ऽहू॒तम्। अ॒स्मे इति॑। आ। त्वा॒। इ॒यम्। धीः। अव॑से। इ॒न्द्र॒। य॒म्याः॒ ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:23» मन्त्र:8 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:16» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (उग्र) तेजस्विन् (इन्द्र) विद्या और क्रिया में कुशल ! जिस बुद्धि से (इमे) ये (यज्ञासः) सम्पूर्ण धर्मयुक्त व्यवहार (त्वा) आपको (अश्नुवन्तु) प्राप्त हों और जो (इमे) ये (हवासः) दान, आदान और अदन नामक अर्थात् देना, लेना, खाना (पुरुहूतम्) बहुतों से प्रशंसित (त्वा) आपको (प्र) प्राप्त हों सो (इयम्) यह (धीः) बुद्धि (अस्मे) हम लोगों की वा हम लोगों में (अवसे) रक्षा के लिये हो आप उसको (आ, यम्याः) अच्छे प्रकार विस्तारिये तथा हम लोगों में (प्र) अच्छे प्रकार दीजिये उनके साथ (हि) जिससे (जोषम्) प्रीति को (अनु) अनुकूल (सः) वह आप (मन्दस्वा) आनन्द करिये ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जिन कर्मों और जिस बुद्धि से विज्ञान और आनन्द बढ़ते हैं, उनकी आप लोग वृद्धि करिये ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे उग्रेन्द्र ! ययेमे यज्ञासस्त्वाऽश्नुवन्तु य इमे हवासः पुरुहूतं त्वा प्राश्नुवन्तु सेयं धीरस्मे अवसेऽस्तु त्वं तामायम्याः। अस्मासु प्रयम्यास्तैर्हि जोषमनु स त्वं मन्दस्वा ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (मन्दस्वा) आनन्द। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (हि) यतः (अनु) (जोषम्) प्रीतिम् (उग्र) तेजस्विन् (प्र) (त्वा) त्वाम् (यज्ञासः) सर्वे धर्म्या व्यवहाराः (इमे) (अश्नुवन्तु) प्राप्नुवन्तु (प्र) (इमे) (हवासः) दानाऽऽदानाऽदनाख्याः (पुरुहूतम्) बहुभिः प्रशंसितम् (अस्मे) अस्माकमस्मासु वा (आ) समन्तात् (त्वा) त्वाम् (इयम्) (धीः) (अवसे) (इन्द्रः) विद्याक्रियाकुशल (यम्याः) ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यैः कर्मभिर्येया च प्रज्ञया विज्ञानानन्दौ वर्धेते तानि यूयमुन्नयत ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! ज्या कर्मांनी व बुद्धीने विज्ञान व आनंद वाढतात त्यांची तुम्ही वृद्धी करा. ॥ ८ ॥