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आ सं॒यत॑मिन्द्र णः स्व॒स्तिं श॑त्रु॒तूर्या॑य बृह॒तीममृ॑ध्राम्। यया॒ दासा॒न्यार्या॑णि वृ॒त्रा करो॑ वज्रिन्त्सु॒तुका॒ नाहु॑षाणि ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā saṁyatam indra ṇaḥ svastiṁ śatrutūryāya bṛhatīm amṛdhrām | yayā dāsāny āryāṇi vṛtrā karo vajrin sutukā nāhuṣāṇi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। स॒म्ऽयत॑म्। इ॒न्द्र॒। नः॒। स्व॒स्तिम्। श॒त्रु॒ऽतूर्या॑य। बृ॒ह॒तीम्। अमृ॑ध्राम्। यया॑। दासा॑नि। आर्या॑णि। वृ॒त्रा। करः॑। व॒ज्रि॒न्। सु॒ऽतुका॑। नाहु॑षाणि ॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:22» मन्त्र:10 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:14» मन्त्र:5 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वज्रिन्) शस्त्र और अस्त्र के धारण करनेवाले (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य के करनेवाले ! आप (यया) जिससे (दासानि) शूद्र के कुलों को (आर्याणि) द्विजकुल और (सुतुका) उत्तम प्रकार बढ़नेवाले (नाहुषाणि) मनुष्यसम्बन्धी (वृत्रा) धनों को (आ) सब प्रकार (करः) करती हैं उस (अमृध्राम्) नहीं हिंसा करनेवाली (बृहतीम्) बड़ी सेना को (शत्रुतूर्याय) शत्रुओं के नाश के लिये करिये और उससे (नः) हम लोगों के लिये (संयतम्) किया है संयम जिसके निमित्त उस (स्वस्तिम्) सुख को करिये ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! आप सत्यविद्या के दान और उपदेश से शूद्र के कुल में उत्पन्न हुओं को भी द्विज करिये और सब प्रकार से ऐश्वर्य को प्राप्त कराय तथा शत्रुओं का निवारण करके सुख की वृद्धि कीजिये ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे वज्रिन्निन्द्र ! त्वं यया दासान्यार्याणि सुतुका नाहुषाणि वृत्राऽऽकरस्ताममृध्रां बृहतीं सेनां शत्रुतूर्याय कुर्यास्तया नः संयतं स्वस्तिं कुर्याः ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (संयतम्) कृतसंयमम् (इन्द्र) परमैश्वर्यकारक (नः) अस्मभ्यम् (स्वस्तिम्) सुखम् (शत्रुतूर्याय) शत्रूणां हिंसनाय (बृहतीम्) महतीम् (अमृध्राम्) अहिंसिकाम् (यया) (दासानि) दासकुलानि (आर्याणि) द्विजकुलानि (वृत्रा) धनानि (करः) करोति (वज्रिन्) शस्त्रास्त्रभृत् (सुतुका) सुष्ठु वर्धकानि (नाहुषाणि) मनुष्यसम्बन्धीनि ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे राजंस्त्वं सत्यविद्यादानोपदेशाभ्यां शूद्रकुलोत्पन्नानपि द्विजान् कुर्याः सर्वत ऐश्वर्यं प्रापय्य शत्रून्निवार्य सुखं वर्धय ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा ! सत्य विद्या दान व उपदेश याद्वारे शूद्र कुळात उत्पन्न झालेल्यांनाही द्विज कर व सर्व प्रकारचे ऐश्वर्य प्राप्त करून शत्रूंचे निवारण करून सुखाची वृद्धी कर. ॥ १० ॥