इ॒मा उ॑ त्वा पुरु॒तम॑स्य का॒रोर्हव्यं॑ वीर॒ हव्या॑ हवन्ते। धियो॑ रथे॒ष्ठाम॒जरं॒ नवी॑यो र॒यिर्विभू॑तिरीयते वच॒स्या ॥१॥
imā u tvā purutamasya kāror havyaṁ vīra havyā havante | dhiyo ratheṣṭhām ajaraṁ navīyo rayir vibhūtir īyate vacasyā ||
इ॒माः। ऊँ॒ इति॑। त्वा॒। पु॒रु॒ऽतम॑स्य। का॒रोः। हव्य॑म्। वी॒र॒। हव्याः॑। ह॒व॒न्ते॒। धियः॑। र॒थे॒ऽस्थाम्। अ॒जर॑म्। नवी॑यः। र॒यिः। विऽभू॑तिः। ई॒य॒ते॒। व॒च॒स्या ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब बारह ऋचावाले इक्कीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में फिर उस राजा का किस अर्थ आश्रय करें, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तं राजानं किमर्थमाश्रयेरन्नित्याह ॥
हे वीर ! ये पुरुतमस्य कारोर्हव्यं हवन्ते या इमा हव्या धियो रथेष्ठां नवीयोऽजरं रयिर्वचस्या विभूतिरीयते ताभिर्युक्तं त्वा उ वयं सत्कुर्याम ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात इंद्र, विद्वान, ईश्वर व राजा यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची यापूर्वीच्या सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.