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तूर्व॒न्नोजी॑यान्त॒वस॒स्तवी॑यान्कृ॒तब्र॒ह्मेन्द्रो॑ वृ॒द्धम॑हाः। राजा॑भव॒न्मधु॑नः सो॒म्यस्य॒ विश्वा॑सां॒ यत्पु॒रां द॒र्त्नुमाव॑त् ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tūrvann ojīyān tavasas tavīyān kṛtabrahmendro vṛddhamahāḥ | rājābhavan madhunaḥ somyasya viśvāsāṁ yat purāṁ dartnum āvat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तूर्व॑न्। ओजी॑यान्। त॒वसः॑। तवी॑यान्। कृ॒तऽब्र॑ह्मा। इन्द्रः॑। वृ॒द्धऽम॑हाः। राजा॑। अ॒भ॒व॒त्। मधु॑नः। सो॒म्यस्य॑। विश्वा॑साम्। यत्। पु॒राम्। द॒र्त्नुम्। आव॑त् ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:20» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:9» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यत्) जो शत्रुओं का (तूर्वन्) नाश करता हुआ (ओजीयान्) अतिशय पराक्रमयुक्त जन (तवसः) बल का (तवीयान्) अत्यन्त प्रशंसित (कृतब्रह्मा) किया धन वा अन्न जिसने वह (वृद्धमहाः) बड़े सहायक जिसके ऐसा (इन्द्रः) ऐश्वर्य का बढ़ानेवाला (राजा) प्रकाशमान राजा (अभवत्) होवे और (सोम्यस्य) रस आदिकों में हुए (मधुनः) मधुर आदि गुणों से युक्त के और (विश्वासाम्) सम्पूर्ण (पुराम्) नगरियों के (दर्त्नुम्) नाश करनेवाले की (आवत्) रक्षा करे, उसी को राजा करिये ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो पराक्रमी, बली जनों में बली, विद्वानों में विद्वान्, वृद्ध जनों में वृद्ध और जीतते हुए भृत्यों का सत्कार करनेवाला होवे, उसी का राज्य में अभिषिक्त करके सुखी हूजिये ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यद्यः शत्रूँस्तूर्वन्नोजीयांस्तवसस्तवीयान् कृतब्रह्मा वृद्धमहा इन्द्रो राजाऽभवत् सोम्यस्य मधुनो विश्वासां पुरां दर्त्नुमावत् तमेव राजानं कुरुध्वम् ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तूर्वन्) हिंसन् (ओजीयान्) अतिशयेन पराक्रमी (तवसः) बलस्य (तवीयान्) अतिशयेन प्रशंसितः (कृतब्रह्मा) कृतं ब्रह्म धनमन्नं वा येन सः (इन्द्रः) ऐश्वर्यवर्द्धकः (वृद्धमहाः) वृद्धा महान्तः सहाया यस्य सः (राजा) प्रकाशमानः (अभवत्) भवेत् (मधुनः) मधुरादिगुणयुक्तस्य (सोम्यस्य) सोमेषु रसादिषु भवस्य (विश्वासाम्) सर्वासाम् (यत्) (पुराम्) नगरीणाम् (दर्त्नुम्) विदारकम् (आवत्) रक्षेत् ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यः पराक्रमी बलिनां बली विदुषां विद्वान् वृद्धानां वृद्धो विजयमानानां भृत्यानां सत्कर्त्ता स्यात्तमेव राज्येऽभिषिक्तं कृत्वा सुखिनो भवत ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जो पराक्रमी, बलवान लोकांत बलवान, विद्वानांत विद्वान, वृद्ध लोकांत वृद्ध व जिंकलेल्या सेवकांचा सत्कार करणारा असेल त्यालाच राज्याभिषेक करून सुखी व्हा. ॥ ३ ॥