ऋध॒द्यस्ते॑ सु॒दान॑वे धि॒या मर्तः॑ श॒शम॑ते। ऊ॒ती ष बृ॑ह॒तो दि॒वो द्वि॒षो अंहो॒ न त॑रति ॥४॥
ṛdhad yas te sudānave dhiyā martaḥ śaśamate | ūtī ṣa bṛhato divo dviṣo aṁho na tarati ||
ऋध॑त्। यः। ते॒। सु॒ऽदान॑वे। धि॒या। मर्तः॑। श॒शम॑ते। ऊ॒ती। सः। बृ॒ह॒तः। दि॒वः। द्वि॒षः। अंहः॑। न। त॒र॒ति॒ ॥४॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
हे विद्वन् ! यो मर्त्तो धिया सुदानवे त ऋधच्छशमते स ऊती बृहतो दिवो द्विषोंऽहो न तरति ॥४॥