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यस्ते॒ मदः॑ पृतना॒षाळमृ॑ध्र॒ इन्द्र॒ तं न॒ आ भ॑र शूशु॒वांस॑म्। येन॑ तो॒कस्य॒ तन॑यस्य सा॒तौ मं॑सी॒महि॑ जिगी॒वांस॒स्त्वोताः॑ ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yas te madaḥ pṛtanāṣāḻ amṛdhra indra taṁ na ā bhara śūśuvāṁsam | yena tokasya tanayasya sātau maṁsīmahi jigīvāṁsas tvotāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। ते॒। मदः॑। पृ॒त॒ना॒षाट्। अमृ॑ध्रः। इन्द्र॑। तम्। नः॒। आ। भ॒र॒। शू॒शु॒ऽवांस॑म्। येन॑। तो॒कस्य॑। तन॑यस्य। सा॒तौ। मं॒सी॒महि॑। जि॒गी॒वांसः॑। त्वाऽऊ॑ताः ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:19» मन्त्र:7 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:8» मन्त्र:2 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) राजन् ! (ते) आप का (यः) जो (अमृध्रः) नहीं हिंसा करने और (पृतनाषाट्) सेनाओं को सहनेवाला (मदः) आनन्द है (येन) जिससे (जिगीवांसः) जीतनेवाले (त्वोताः) आप से रक्षित हम लोग (तोकस्य) सन्तान (तनयस्य) सुकुमार के (सातौ) संविभाग में रक्षा और विद्यावान् को (मंसीमहि) जानें और आप (तम्) उस (शूशुवांसम्) श्रेष्ठ गुणों से व्याप्त को (नः) हम लोगों के लिये (आ, भर) सब प्रकार से धारण करिये ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे प्रजाजनो ! आप लोग राजा के प्रति यह कहो कि हम लोगों के सन्तान जिस प्रकार उत्तम शिक्षित हों, वैसे नियमों को करिये जिससे विजय और आनन्द बढ़े ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र राजन् ! ते योऽमृध्रः पृतनाषाण्मदोऽस्ति येन जिगीवांसस्त्वोता वयं तोकस्य तनयस्य सातौ रक्षां विद्यादानं च मंसीमहि त्वं तं शूशुवांसं न आ भर ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) (ते) तव (मदः) अतिहर्षः (पृतनाषाट्) यः पृतनाः सेनाः सहते सः (अमृध्रः) अहिंस्रः (इन्द्र) राजन् (तम्) (नः) अस्मभ्यम् (आ) (भर) (शूशुवांसम्) शुभगुणव्यापिनम् (येन) (तोकस्य) अपत्यस्य (तनयस्य) सुकुमारस्य (सातौ) संविभागे (मंसीमहि) विजानीयाम (जिगीवांसः) जेतुं शीलाः (त्वोताः) त्वया रक्षिताः ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे प्रजाजना ! राजानं प्रत्येवं ब्रुवन्तु नोऽस्माकं सन्ताना यथा सुशिक्षिताः स्युस्तथा नियमान् विधेहि यतो विजयानन्दौ वर्धेयाताम् ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे प्रजाजनांनो ! तुम्ही राजाला असे म्हणा की आमची संताने ज्या प्रकारे उत्तम शिक्षित होतील तसे नियम तयार करावेत, ज्यामुळे विजय प्राप्त होऊन आनंद वाढेल. ॥ ७ ॥