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इन्द्र॑मे॒व धि॒षणा॑ सा॒तये॑ धाद्बृ॒हन्त॑मृ॒ष्वम॒जरं॒ युवा॑नम्। अषा॑ळ्हेन॒ शव॑सा शूशु॒वांसं॑ स॒द्यश्चि॒द्यो वा॑वृ॒धे असा॑मि ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indram eva dhiṣaṇā sātaye dhād bṛhantam ṛṣvam ajaraṁ yuvānam | aṣāḻhena śavasā śūśuvāṁsaṁ sadyaś cid yo vāvṛdhe asāmi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्र॑म्। ए॒व। धि॒षणा॑। सा॒तये॑। धा॒त्। बृ॒हन्त॑म्। ऋ॒ष्वम्। अ॒जर॑म्। युवा॑नम्। अषा॑ळ्हेन। शव॑सा। शू॒सु॒ऽवांस॑म्। स॒द्यः। चि॒त्। यः। व॒वृ॒धे। असा॑मि ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:19» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:7» मन्त्र:2 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यों को किस प्रकार से उन्नति करनी चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (धिषणा) बुद्धि वा कर्म से (सातये) संविभाग के लिये (बृहन्तम्) पृथिवी के समीप से अतिविस्तीर्ण (ऋष्वम्) जानेवाले (अजरम्) वृद्धावस्था से रहित (युवानम्) युवाजन को जैसे वैसे (अषाळ्हेन) शत्रुओं से नहीं सहने योग्य (शवसा) बल से (शूशुवांसम्) व्याप्तिमान् (इन्द्रम्) सूर्य के सदृश अत्यन्त ऐश्वर्यवाले को (धात्) धारण करता है वह (एव) ही (सद्यः) शीघ्र (असामि) अत्यन्त (चित्) निश्चित (वावृधे) वृद्धि की प्राप्त होता है ॥२॥
भावार्थभाषाः - जैसे बड़े मित्र को प्राप्त होकर मनुष्य वृद्धि को प्राप्त होते हैं, वैसे ही बिजुली की विद्या को प्राप्त होकर अतुल वृद्धि को प्राप्त होते हैं ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यैः कथमुन्नतिः कार्येत्याह ॥

अन्वय:

यो धिषणा सातये बृहन्तमृष्वमजरं युवानमिवाषाळ्हेन शवसा शूशुवांसमिन्द्रं धात् स एव सद्योऽसामि चित् वावृधे ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रम्) सूर्यमिव परमैश्वर्यवन्तम् (एव) (धिषणा) प्रज्ञया कर्मणा वा (सातये) संविभागाय (धात्) दधाति (बृहन्तम्) पृथिव्याः सकाशादतिविस्तीर्णम् (ऋष्वम्) गन्तारम् (अजरम्) जरारहितम् (युवानम्) (अषाळ्हेन) शत्रुभिरसोढव्येन (शवसा) (शूशुवांसम्) व्याप्नुवन्तम् (सद्यः) (चित्) (यः) (वावृधे) वर्धते (असामि) अनल्पम् ॥२॥
भावार्थभाषाः - यथा महन्मित्रं प्राप्य मनुष्या वर्धन्ते तथैव विद्युद्विद्यां लब्ध्वाऽतुलां वृद्धिं प्राप्नुवन्ति ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे चांगले मित्र प्राप्त झाल्यास माणसाची वृद्धी होते तसेच विद्युत विद्या प्राप्त करून अतुल वृद्धी होते. ॥ २ ॥