स म॒ज्मना॒ जनि॑म॒ मानु॑षाणा॒मम॑र्त्येन॒ नाम्नाति॒ प्र स॑र्स्रे। स द्यु॒म्नेन॒ स शव॑सो॒त रा॒या स वी॒र्ये॑ण॒ नृत॑मः॒ समो॑काः ॥७॥
sa majmanā janima mānuṣāṇām amartyena nāmnāti pra sarsre | sa dyumnena sa śavasota rāyā sa vīryeṇa nṛtamaḥ samokāḥ ||
सः। म॒ज्मना॑। जनि॑म। मानु॑षाणाम्। अम॑र्त्येन। नाम्ना॑। अति॑। प्र। स॒र्स्रे॒। सः। द्यु॒म्नेन॑। सः। शव॑सा। उ॒त। रा॒या। सः। वी॒र्ये॑ण। नृऽत॑मः। सम्ऽओ॑काः ॥७॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर राजा को क्यो करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुना राज्ञा किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
हे राजन् ! यथाऽयं भृत्यो मज्मना स द्युम्नेन स शवसा स रायोत स वीर्य्येण मानुषाणाममर्त्येन नाम्ना जनिम प्रादुर्भावमति प्र सर्स्रे सः समोका नृतमः स्यात्तथा विधेहि ॥७॥