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आ स॒हस्रं॑ प॒थिभि॑रिन्द्र रा॒या तुवि॑द्युम्न तुवि॒वाजे॑भिर॒र्वाक्। या॒हि सू॑नो सहसो॒ यस्य॒ नू चि॒ददे॑व॒ ईशे॑ पुरुहूत॒ योतोः॑ ॥११॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā sahasram pathibhir indra rāyā tuvidyumna tuvivājebhir arvāk | yāhi sūno sahaso yasya nū cid adeva īśe puruhūta yotoḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। स॒हस्र॑म्। प॒थिऽभिः॑। इ॒न्द्र॒। रा॒या। तुवि॑ऽद्युम्न। तु॒वि॒ऽवाजे॑भिः। अ॒र्वाक्। या॒हि। सू॒नो॒ इति॑। स॒ह॒सः॒। यस्य॑। नु। चि॒त्। अदे॑वः। ईशे॑। पु॒रु॒ऽहू॒त॒। योतोः॑ ॥११॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:18» मन्त्र:11 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:6» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजा क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (तुविद्युम्न) बहुत प्रशंसा से युक्त (पुरुहूत) बहुतों से आह्वान किये गये (सहसः) बलवान् के (सूनो) पुत्र (इन्द्र) दुष्टता के नाशक राजन् ! आप (पथिभिः) मार्गों (राया) धन और (तुविवाजेभिः) बहुत वेग वा बहुत संग्रामों के साथ (अर्वाक्) पीछे से (सहस्रम्) अनेकों को (आ) सब ओर से (याहि) प्राप्त हूजिये और (यस्य) जिस (योतोः) मिश्रित और अमिश्रित करनेवाले का (चित्) भी (अदेवः) विद्वान् से भिन्न जन (ईशे) इच्छा करता है, उसको (नू) शीघ्र प्राप्त होओ ॥११॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! आप विद्या और विनय के मार्ग से प्रजाओं का पिता के सदृश पालन करके यशस्वी होकर सत्य और असत्य का यथावत् निर्णय करिये ॥११॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजा किं कुर्यादित्याह ॥

अन्वय:

हे तुविद्युम्न पुरुहूत सहसः सूनो इन्द्र ! त्वं पथिभी राया तुविवाजेभिस्सहार्वाक् सहस्रमाऽऽयाहि यस्य योतोश्चिददेव ईशे तन्नू प्राप्नुहि ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (सहस्रम्) असंख्यातम् (पथिभिः) मार्गैः (इन्द्र) (राया) धनेन (तुविद्युम्न) बहुप्रशंस (तुविवाजेभिः) बहुवेगैर्बहुसङ्ग्रामैर्वा (अर्वाक्) पश्चात् (याहि) गच्छ (सूनो) अपत्य (सहसः) बलवतः (यस्य) (नू) सद्यः (चित्) अपि (अदेवः) अविद्वान् (ईशे) ईष्टे (पुरुहूत) बहुभिः कृताह्वान (योतोः) मिश्रिताऽमिश्रितकर्त्तुः ॥११॥
भावार्थभाषाः - हे राजँस्त्वं विद्याविनयमार्गेण प्रजाः पितृवत्पालयित्वा यशस्वी भूत्वा सत्याऽसत्ययोर्यथावन्निर्णयं कुरु ॥११॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा! तू विद्या व विनयाने प्रजेचे पित्याप्रमाणे पालन करून यशस्वी बनून सत्यासत्याचा यथायोग्य निर्णय कर. ॥ ११ ॥