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ए॒वा पा॑हि प्र॒त्नथा॒ मन्द॑तु त्वा श्रु॒धि ब्रह्म॑ वावृ॒धस्वो॒त गी॒र्भिः। आ॒विः सूर्यं॑ कृणु॒हि पी॑पि॒हीषो॑ ज॒हि शत्रूँ॑र॒भि गा इ॑न्द्र तृन्धि ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

evā pāhi pratnathā mandatu tvā śrudhi brahma vāvṛdhasvota gīrbhiḥ | āviḥ sūryaṁ kṛṇuhi pīpihīṣo jahi śatrūm̐r abhi gā indra tṛndhi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ए॒व। पा॒हि॒। प्र॒त्नऽथा॑। मन्द॑तु। त्वा॒। श्रु॒धि। ब्रह्म॑। व॒वृ॒धस्व॑। उ॒त। गीः॒ऽभिः। आ॒विः। सूर्य॑म्। कृ॒णु॒हि। पी॒पि॒हीषः॑। ज॒हि। शत्रू॑न्। अ॒भि। गाः। इ॒न्द्र॒। तृ॒न्धि॒ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:17» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:1» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) दुष्टों के नाश करनेवाले ! (प्रत्नथा) प्राचीन जन जैसे वैसे आप (ब्रह्म) वेद की (पाहि) रक्षा कीजिये और जो वेद (त्वा) आपकी (मन्दतु) प्रशंसा करे, उसको आप (श्रुधि) सुनिये उससे (वावृधस्व) बढ़िये और (उत) भी (गीर्भिः) वाणियों से (सूर्य्यम्) परमेश्वर का (आविः) प्राकट्य (कृणुहि) करिये तथा (इषः) अन्न का (पीपिहि) पान करिये और (शत्रून्) शत्रुओं का (अभि, तृन्धि) सब प्रकार से नाश करिये और दोषों का (जहि) त्याग करिये और (गाः) पृथिवियों को (एवा) ही प्राप्त हूजिये ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो श्रद्धा से परमेश्वर की उपासना करके विद्यार्थियों की परीक्षा करते हैं, वे जगत् के प्रिय होते हैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! प्रत्नथा त्वं ब्रह्म पाहि यद्ब्रह्म त्वा मन्दतु यत्त्वं श्रुधि तेन वावृधस्वोत गीर्भिः सूर्य्यमाविष्कृणुहीषः पीपीहि शत्रूनभि तृन्धि दोषान् जहि गा एवा प्राप्नुहि ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (एवा) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (पाहि) (प्रत्नथा) प्रत्नः प्राचीन इव (मन्दतु) प्रशंसतु (त्वा) त्वाम् (श्रुधि) शृणु (ब्रह्म) वेदम् (वावृधस्व) वृद्धो भव (उत) अपि (गीर्भिः) (आविः) प्राकट्ये (सूर्य्यम्) परमेश्वरम् (कृणुहि) कुरु (पीपिहि) पिब (इषः) अन्नम् (जहि) (शत्रून्) (अभि) (गाः) पृथिवीः (इन्द्र) दुष्टविदारक (तृन्धि) हिन्धि ॥३॥
भावार्थभाषाः - ये श्रद्धया परमेश्वरमुपास्य विद्यार्थिनां परीक्षां कुर्वन्ति ते जगत्प्रिया भवन्ति ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे श्रद्धेने परमेश्वराची उपासना करून विद्यार्थ्यांची परीक्षा घेतात ते जगात प्रिय होतात. ॥ ३ ॥