अच्छा॑ नो या॒ह्या व॑हा॒भि प्रयां॑सि वी॒तये॑। आ दे॒वान्त्सोम॑पीतये ॥४४॥
acchā no yāhy ā vahābhi prayāṁsi vītaye | ā devān somapītaye ||
अच्छ॑। नः॒। या॒हि॒। आ। व॒ह॒। अ॒भि। प्रयां॑सि। वी॒तये॑। आ। दे॒वान्। सोम॑ऽपीतये ॥४४॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
मनुष्यों को किसका सत्कार करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
मनुष्यैः केषां सत्कारः कर्त्तव्य इत्याह ॥
हे विद्वंस्त्वन्नोऽच्छा सोमपीतय आ याहि। प्रयांस्यभ्याऽऽवह वीतये देवानाऽऽयाहि ॥४४॥