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अच्छा॑ नो या॒ह्या व॑हा॒भि प्रयां॑सि वी॒तये॑। आ दे॒वान्त्सोम॑पीतये ॥४४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

acchā no yāhy ā vahābhi prayāṁsi vītaye | ā devān somapītaye ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अच्छ॑। नः॒। या॒हि॒। आ। व॒ह॒। अ॒भि। प्रयां॑सि। वी॒तये॑। आ। दे॒वान्। सोम॑ऽपीतये ॥४४॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:16» मन्त्र:44 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:29» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:44


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यों को किसका सत्कार करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! आप (नः) हम लोगों को (अच्छा) उत्तम प्रकार (सोमपीतये) सोमलतारूप ओषधि के रस के पान के लिये (आ, याहि) सब ओर से प्राप्त होओ और (प्रयांसि) अत्यन्त प्रिय वस्तुओं को (अभि) चारों ओर से (आ) सब प्रकार (वह) प्राप्त होओ और (वीतये) ज्ञान के लिये (देवान्) विद्वानों को सब ओर से प्राप्त होओ ॥४४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि सत्कार के लिये विद्वानों का आह्वान करें ॥४४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यैः केषां सत्कारः कर्त्तव्य इत्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वंस्त्वन्नोऽच्छा सोमपीतय आ याहि। प्रयांस्यभ्याऽऽवह वीतये देवानाऽऽयाहि ॥४४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अच्छा) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (नः) अस्मान् (याहि) प्राप्नुहि (आ) (वह) प्राप्नुहि (अभि) (प्रयांसि) प्रियतमानि (वीतये) ज्ञानाय (आ) समन्तात् (देवान्) विदुषः (सोमपीतये) सोमस्य पानाय ॥४४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैः सत्काराय विदुषामाह्वानं कर्त्तव्यम् ॥४४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी सत्कारासाठी विद्वानांना आवाहन करावे. ॥ ४४ ॥