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त्वं तं दे॑व जि॒ह्वया॒ परि॑ बाधस्व दु॒ष्कृत॑म्। मर्तो॒ यो नो॒ जिघां॑सति ॥३२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvaṁ taṁ deva jihvayā pari bādhasva duṣkṛtam | marto yo no jighāṁsati ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम्। तम्। दे॒व॒। जि॒ह्वया॑। परि॑। बा॒ध॒स्व॒। दुः॒ऽकृत॑म्। मर्तः॑। यः। नः॒। जिघां॑सति ॥३२॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:16» मन्त्र:32 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:27» मन्त्र:2 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:32


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजा को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (देव) विद्यायुक्त न्यायाधीश ! (त्वम्) आप (यः) जो (मर्त्तः) मनुष्य (नः) हम लोगों की (जिघांसति) मारने की इच्छा करता है (तम्) उस (दुष्कृतम्) दुष्ट कर्म्म करनेवाले को (जिह्वया) वाणी से (परि) सब ओर से (बाधस्व) पीड़ित करिये ॥३२॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् वा विद्वन् ! जो न्यायधर्म का त्याग करके पक्षपात से अधर्म्म करता है, उसको शीघ्र निरन्तर दण्ड दीजिये ॥३२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजा किं कुर्य्यादित्याह ॥

अन्वय:

हे देव ! त्वं यो मर्त्तो नो जिघांसति तं दुष्कृतं जिह्वया परि बाधस्व ॥३२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वम्) (तम्) (देव) विद्वन् न्यायेश (जिह्वया) वाचा (परि) सर्वतः (बाधस्व) (दुष्कृतम्) यो दुष्टं कर्म करोति तम् (मर्त्तः) मनुष्यः (यः) (नः) अस्मान् (जिघांसति) हन्तुमिच्छति ॥३२॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् विद्वन् वा ! यो न्यायधर्म्मं विहाय पक्षपातेनाधर्म्मं करोति तं सद्यो भृशं दण्डय ॥३२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा किंवा विद्वाना ! जो न्याय, धर्म पाळीत नाही व पक्षपाताने अधर्म करतो त्याला तात्काळ दंड दे. ॥ ३२ ॥