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त्वं नः॑ पा॒ह्यंह॑सो॒ जात॑वेदो अघाय॒तः। रक्षा॑ णो ब्रह्मणस्कवे ॥३०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvaṁ naḥ pāhy aṁhaso jātavedo aghāyataḥ | rakṣā ṇo brahmaṇas kave ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम्। नः॒। पा॒हि॒। अंह॑सः। जात॑ऽवेदः। अ॒घ॒ऽय॒तः। रक्ष॑। नः॒। ब्र॒ह्म॒णः॒। क॒वे॒ ॥३०॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:16» मन्त्र:30 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:26» मन्त्र:5 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:30


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजा और विद्वान् क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (जातवेदः) विद्या से युक्त (ब्रह्मणः) वेद के (कवे) कहनेवाले ! (त्वम्) आप (नः) हम लोगों की (अंहसः) अधर्माचरण से (पाहि) रक्षा कीजिये और (नः) हम लोगों की (अघायतः) अपने पाप करते हुए से (रक्षा) रक्षा कीजिये ॥३०॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् वा विद्वन् ! आप दोनों हम लोगों का अधर्म्माचरण और अधर्म्म का आचरण करते हुए से अलग करके सुख को बढ़ाइये ॥३०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजविद्वद्भ्यां किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे जातवेदो ब्रह्मणस्कवे ! त्वं नोंऽहसः पाहि नोऽघायतो रक्षा ॥३०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वम्) (नः) अस्मान् (पाहि) (अंहसः) अधर्माचरणात् (जातवेदः) जातविद्य (अघायतः) आत्मनोऽघमाचरतः (रक्षा) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (नः) अस्मान् (ब्रह्मणः) वेदस्य (कवे) वक्तः ॥३०॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् विद्वन् वा ! युवामस्मानधर्माचरणादधर्म्ममाचरतश्च पृथग्रक्ष्य सुखं वर्धयतम् ॥३०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा किंवा विद्वान, तुम्ही दोघे आम्हाला अधर्माचरण व अधर्माचरणी यांच्यापासून वेगळे करून सुख वाढवा. ॥ ३० ॥