न॒हि ते॑ पू॒र्तम॑क्षि॒पद्भुव॑न्नेमानां वसो। अथा॒ दुवो॑ वनवसे ॥१८॥
nahi te pūrtam akṣipad bhuvan nemānāṁ vaso | athā duvo vanavase ||
न॒हि। ते॒। पू॒र्त्तम्। अ॒क्षि॒ऽपत्। भुव॑त्। ने॒मा॒ना॒म्। व॒सो॒ इति॑। अथ॑। दुवः॑। व॒न॒व॒से॒ ॥१८॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
मनुष्यों की किस प्रकार से इच्छा सिद्ध होती है, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
मनुष्याणां कथमिच्छा सिध्यतीत्याह ॥
हे वसो ! ते नेमानां पूर्त्तं कश्चिदपि नह्यक्षिपत्। नहि भुवत्तस्मादथा दुवो वनवसे ॥१८॥