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न॒हि ते॑ पू॒र्तम॑क्षि॒पद्भुव॑न्नेमानां वसो। अथा॒ दुवो॑ वनवसे ॥१८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

nahi te pūrtam akṣipad bhuvan nemānāṁ vaso | athā duvo vanavase ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

न॒हि। ते॒। पू॒र्त्तम्। अ॒क्षि॒ऽपत्। भुव॑त्। ने॒मा॒ना॒म्। व॒सो॒ इति॑। अथ॑। दुवः॑। व॒न॒व॒से॒ ॥१८॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:16» मन्त्र:18 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:24» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:18


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यों की किस प्रकार से इच्छा सिद्ध होती है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वसो) वसानेवाले (ते) आपके (नेमानाम्) अन्नों के (पूर्त्तम्) पूर्ण करनेवाले को मैं भी (नहि) नहीं (अक्षिपत्) फेंकता और नहीं (भुवत्) होवे, इससे (अथा) इसके अनन्तर (दुवः) सेवा को (वनवसे) स्वीकार करिये ॥१८॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य सत्य आचरण को करते हैं, उनकी कामना की पूर्ति कभी भी नहीं नष्ट की जाती है ॥१८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्याणां कथमिच्छा सिध्यतीत्याह ॥

अन्वय:

हे वसो ! ते नेमानां पूर्त्तं कश्चिदपि नह्यक्षिपत्। नहि भुवत्तस्मादथा दुवो वनवसे ॥१८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (नहि) निषेधे (ते) तव (पूर्त्तम्) पूर्त्तिकरम् (अक्षिपत्) क्षिपति (भुवत्) भवेत् (नेमानाम्) अन्नानाम्। नेम इत्यन्ननाम। (निघं०२.७) (वसो) वासयितः (अथा) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (दुवः) परिचरणम् (वनवसे) सम्भज ॥१८॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः सत्याचारं कुर्वन्ति तेषां कामपूर्तिं कदापि न हन्यते ॥१८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे सत्याचरणी असतात त्यांची कामनापूर्ती सदैव होते; ती कधी नष्ट होत नाही. ॥ १८ ॥