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तमु॑ त्वा द॒ध्यङ्ङृषिः॑ पु॒त्र ई॑धे॒ अथ॑र्वणः। वृ॒त्र॒हणं॑ पुरन्द॒रम् ॥१४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tam u tvā dadhyaṅṅ ṛṣiḥ putra īdhe atharvaṇaḥ | vṛtrahaṇam puraṁdaram ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तम्। ऊँ॒ इति॑। त्वा॒। द॒ध्यङ्। ऋषिः॑। पु॒त्रः। ई॒धे॒। अथ॑र्वणः। वृ॒त्र॒ऽहन॑म्। पु॒र॒म्ऽद॒रम् ॥१४॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:16» मन्त्र:14 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:23» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:14


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वानों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् राजन् (तम्, उ) उन्हीं (वृत्रहणम्) मेघों के नाश करनेवाले (पुरन्दरम्) मेघों के पुरों को नाश करनेवाले सूर्य्य को जैसे वैसे (त्वा) आपको (अथर्वणः) नहीं हिंसा करनेवाले का (पुत्रः) पुत्र (दध्यङ्) धारण करनेवाले विद्वानों को प्राप्त होने और (ऋषिः) मन्त्र और अर्थ जाननेवाला (ईधे) प्रदीप्त करता है, वैसे आप मुझको करिये ॥१४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे विद्वान् जनो ! जैसे ईश्वर ने प्रकाशस्वरूप और सम्पूर्ण जगत् का उपकारक सूर्य्य रचा है, वैसे विद्या से प्रकाशित जनों को विद्वान् करो ॥१४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्भिः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वन् राजंस्तमु वृत्रहणं पुरन्दरं सूर्य्यमिव त्वाऽथर्वणः पुत्रो दध्यङ् ऋषिरीधे तथा त्वं मां कुरु ॥१४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तम्) (उ) (त्वा) त्वाम् (दध्यङ्) यो धारकान् विदुषोऽञ्चति प्राप्नोति (ऋषिः) मन्त्रार्थवेत्ता (पुत्रः) तनयः (ईधे) प्रदीपयति (अथर्वणः) अहिंसकस्य (वृत्रहणम्) मेघहन्तारम् (पुरन्दरम्) यो मेघस्य पुराणि दृणाति ॥१४॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे विद्वांसो ! यथेश्वरेण प्रकाशमयः सकलोपकारकः सूर्यो निर्मितस्तथा विद्यया प्रकाशिताञ्जनान् विदुषः सम्पादयन्तु ॥१४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे विद्वानांनो ! ईश्वराने जसा प्रकाशस्वरूप व संपूर्ण जगाचा उपकारक सूर्य निर्माण केला आहे तसे विद्येमुळे प्रसिद्ध असलेल्या लोकांना विद्वान करा. ॥ १४ ॥