वांछित मन्त्र चुनें

नः॑ पृ॒थु श्र॒वाय्य॒मच्छा॑ देव विवाससि। बृ॒हद॑ग्ने सु॒वीर्य॑म् ॥१२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa naḥ pṛthu śravāyyam acchā deva vivāsasi | bṛhad agne suvīryam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। नः॒। पृ॒थु। श्र॒वाय्य॑म्। अच्छ॑। दे॒व॒। वि॒वा॒स॒सि॒। बृ॒हत्। अ॒ग्ने॒। सु॒ऽवीर्य॑म् ॥१२॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:16» मन्त्र:12 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:23» मन्त्र:2 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:12


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को परस्पर कैसा वर्त्ताव करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (देव) विद्या के देनेवाले (अग्ने) अग्नि के समान कार्य्य के साधक ! जैसे अग्नि वैसे जिस कारण से आप (नः) हम लोगों के लिये (पृथु) विस्तारयुक्त (श्रवाय्यम्) सुनने योग्य (बृहत्) बड़े (सुवीर्य्यम्) श्रेष्ठ बलयुक्त (अच्छा) अच्छे प्रकार (विवाससि) सेवा करते हो, इससे (सः) वह आप सत्कार करने योग्य हो ॥१२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो जिसका उपकार करते हैं, वे उनके सत्कार करने योग्य होते हैं ॥१२॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः परस्परं कथं वर्त्तितव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे देवोऽग्नेऽग्निरिव यतस्त्वं नः पृथु श्रवाय्यं बृहत्सुवीर्य्यमच्छा विवाससि तस्मात् स त्वं सत्कर्त्तव्योऽसि ॥१२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (नः) अस्मभ्यम् (पृथु) विस्तीर्णम् (श्रवाय्यम्) श्रोतुमर्हम् (अच्छा) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (देव) विद्यादातः (विवाससि) परिचरसि (बृहत्) (अग्ने) अग्निरिव कार्य्यसाधक (सुवीर्य्यम्) सुबलम् ॥१२॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये यस्योपकारं कुर्वन्ति ते तस्य सत्कर्त्तव्या भवन्ति ॥१२॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे ज्याच्यावर उपकार करतात ते सत्कार करण्यायोग्य असतात. ॥ १२ ॥