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अग्न॒ आ या॑हि वी॒तये॑ गृणा॒नो ह॒व्यदा॑तये। नि होता॑ सत्सि ब॒र्हिषि॑ ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agna ā yāhi vītaye gṛṇāno havyadātaye | ni hotā satsi barhiṣi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्ने॑। आ। या॒हि॒। वी॒तये॑। गृ॒णा॒नः। ह॒व्यऽदा॑तये। नि। होता॑। स॒त्सि॒। ब॒र्हिषि॑ ॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:16» मन्त्र:10 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:22» मन्त्र:5 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वानों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् ! जिस कारण से आप (गृणानः) स्तुति करते हुए (होता) दाता (बर्हिषि) उत्तम सभा में (वीतये) विद्या आदि श्रेष्ठ गुणों की व्याप्ति के लिये और (हव्यदातये) देने योग्य के दान के लिये (नि, सत्सि) उत्तम प्रकार जानते हो इससे हम लोगों की उत्तम दीप्ति को (आ, याहि) सब प्रकार प्राप्त होओ ॥१०॥
भावार्थभाषाः - जहाँ विद्वान् जन विद्या की वृद्धि करने की इच्छा करते हैं, वहाँ सब सुखी होते हैं ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्भिः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! यतस्त्वं गृणानो होता बर्हिषि वीतये हव्यदातये निषत्सि तस्मादस्माकं समिधमाऽऽयाहि ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) विद्वन् (आ) (याहि) आगच्छ (वीतये) विद्यादिशुभगुणव्याप्तये (गृणानः) स्तुवन् (हव्यदातये) दातव्यदानाय (नि) (होता) दाता (सत्सि) समवैषि (बर्हिषि) उत्तमायां सभायाम् ॥१०॥
भावार्थभाषाः - यत्र विद्वांसो विद्यावृद्धिं चिकीर्षन्ति तत्र सर्वे सुखिनो भवन्ति ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जेथे विद्वान विद्यावृद्धीची इच्छा करतात तेथे सर्वजण सुखी होतात. ॥ १० ॥