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धन्या॑ चि॒द्धि त्वे धि॒षणा॒ वष्टि॒ प्र दे॒वाञ्जन्म॑ गृण॒ते यज॑ध्यै। वेपि॑ष्ठो॒ अङ्गि॑रसां॒ यद्ध॒ विप्रो॒ मधु॑च्छ॒न्दो भन॑ति रे॒भ इ॒ष्टौ ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

dhanyā cid dhi tve dhiṣaṇā vaṣṭi pra devāñ janma gṛṇate yajadhyai | vepiṣṭho aṅgirasāṁ yad dha vipro madhu cchando bhanati rebha iṣṭau ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

धन्या॑। चि॒त्। हि। त्वे इति॑। धि॒षणा॑। वष्टि॑। प्र। दे॒वान्। जन्म॑। गृ॒ण॒ते। यज॑ध्यै। वेपि॑ष्ठः। अङ्गि॑रसाम्। यत्। ह॒। विप्रः॑। मधु॑। छ॒न्दः। भन॑ति। रे॒भः। इ॒ष्टौ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:11» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:13» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:1» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे कैसे होकर क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! जो (हि) निश्चित (त्वे) आपके रहते (धन्या) धन को प्राप्त हुई (धिषणा) बुद्धि, अन्तरिक्ष वा पृथिवी (देवान्) विद्वानों की (प्र, वष्टि) कामना करती है उन (अङ्गिरसाम्) प्राणों के सदृश विद्वनों के (जन्म) जन्म को (यजध्यै) उत्तम प्रकार प्राप्त होने को जो (गृणते) स्तुति करते हैं और (यत्) जो (ह) निश्चित (वेपिष्ठः) अतिशय कम्पानेवाला (विप्रः) बुद्धिमान् (रेभः) स्तुतिकर्त्ता (इष्टौ) विज्ञान के बढ़ानेवाले यज्ञ में (मधु) माधुर्य गुण से युक्त विज्ञान और (छन्दः) स्वतन्त्रता को (भनति) कहता है (चित्) उन्हीं सब को हम लोग ग्रहण करें ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो बुद्धि और विद्वानों के सङ्ग से विद्या की कामना करते और अन्यों को उपदेश देते हैं, वे धन्य हैं ॥२ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्ते कीदृशा भूत्वा किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वन् ! या हि त्वे धन्या धिषणा देवान् प्रवष्टि तेषामङ्गिरसां जन्म यजध्यै ये गृणते यद्ध वेपिष्ठो विप्रो रेभ इष्टौ [मधुच्छन्दः] भनति तांश्चित् सर्वान् वयं गृह्णीयाम ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (धन्या) धनं लब्धा (चित्) अपि (हि) (त्वे) त्वयि (धिषणा) प्रज्ञा द्यौः पृथिवी वा (वष्टि) कामयते (प्र) (देवान्) विदुषः (जन्म) (गृणते) स्तुवन्ति (यजध्यै) यष्टुं सङ्गन्तुम् (वेपिष्ठः) अतिशयेन कम्पकः (अङ्गिरसाम्) प्राणानामिव विदुषाम् (यत्) यः (ह) किल (विप्रः) मेधावी (मधु) माधुर्य्यगुणोपेतं विज्ञानम् (छन्दः) स्वातन्त्र्यम् (भनति) वदति (रेभः) स्तोता (इष्टौ) विज्ञानवर्धके यज्ञे ॥३॥
भावार्थभाषाः - ये प्रज्ञया विद्वत्सङ्गेन विद्या कामयन्तेऽन्यानुपदिशन्ति च ते धन्याः सन्ति ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे बुद्धी व विद्वानांच्या संगतीने विद्येची कामना करतात व इतरांना उपदेश करतात ते धन्य असतात. ॥ ३ ॥