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वृ॒तेव॒ यन्तं॑ ब॒हुभि॑र्वस॒व्यै॒३॒॑स्त्वे र॒यिं जा॑गृ॒वांसो॒ अनु॑ ग्मन्। रुश॑न्तम॒ग्निं द॑र्श॒तं बृ॒हन्तं॑ व॒पाव॑न्तं वि॒श्वहा॑ दीदि॒वांस॑म् ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vṛteva yantam bahubhir vasavyais tve rayiṁ jāgṛvāṁso anu gman | ruśantam agniṁ darśatam bṛhantaṁ vapāvantaṁ viśvahā dīdivāṁsam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वृ॒ताऽइ॑व। यन्त॑म्। ब॒हुऽभिः॑। व॒स॒व्यैः॑। त्वे इति॑। र॒यिम्। जा॒गृ॒ऽवांसः॑। अनु॑। ग्म॒न्। रुश॑न्तम्। अ॒ग्निम्। द॒र्श॒तम्। बृ॒हन्त॑म्। व॒पाऽव॑न्तम्। वि॒श्वहा॑। दी॒दि॒ऽवांस॑म् ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:1» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:35» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:1» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् जन क्या जानें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! (जागृवांसः) विद्या से जागृत विद्वान् जन जिसको (बहुभिः) बहुत (वसव्यैः) पृथिवी आदिकों में हुए पदार्थों के साथ (वृतेव) वर्त्तमान होते हैं, जिसमें उस मार्ग से (यन्तम्) जाते (रुशन्तम्) हिंसा करते (दर्शतम्) देखनेवाले वा देखने योग्य (बृहन्तम्) बड़े (वपावन्तम्) बहुत कार्य्यों के संस्कार जमाने के अधिकरण विद्यमान जिसमें उस (विश्वहा) सब दिनों वा सब दिनों की (दीदिवांसम्) प्रकाशमान वा प्रकाश करते हुए (अग्निम्) अग्नि के सदृश विद्यादिरूप के (अनु ग्मन्) पीछे चलते हैं और जो (त्वे) आप में (रयिम्) धन को धारण करे, उसको आप पश्चात् जानिये ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो निरन्तर सर्वत्र चलते हुए सब के प्रकाशक और सम्पूर्ण पदार्थों में व्यापक और पदार्थों के जलानेवाले बिजुली आदि स्वरूप अग्नि को जानकर कार्य्यों में उपयुक्त करते हैं, वे अत्यन्त लक्ष्मी को प्राप्त होते हैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वांसः किं जानीयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वन् ! जागृवांसो विद्वांसो यं बहुभिर्वसव्यैः सह वृतेव यन्तं रुशन्तं दर्शतं बृहन्तं वपावन्तं विश्वहा दीदिवांसमग्निमनु ग्मन् यस्त्वे रयिं दधाति तं त्वमनुविद्धि ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वृतेव) वर्त्तन्ते यस्मिँस्तेन मार्गेण (यन्तम्) गच्छतम् (बहुभिः) (वसव्यैः) वसुषु पृथिव्यादिषु भवैः पदार्थैः (त्वे) त्वयि (रयिम्) धनम् (जागृवांसः) जागरूकाः (अनु) (ग्मन्) अनुगच्छन्ति (रुशन्तम्) हिंसन्तम् (अग्निम्) विद्यादिरूपम् (दर्शतम्) दर्शकं द्रष्टव्यं वा (बृहन्तम्) महान्तम् (वपावन्तम्) बहूनि वपनाधिकरणानि विद्यन्ते यस्मिँस्तम् (विश्वहा) सर्वाणि दिनानि (दीदिवांसम्) प्रकाशमानं प्रकाशयन्तं वा ॥३॥
भावार्थभाषाः - ये सततं सर्वत्र गच्छन्तं सर्वस्य प्रकाशकं सर्वेषु पदार्थेषु व्यापकं विच्छेदकं विद्युदादिस्वरूपं पावकं विदित्वा कार्य्येष्वनुनयन्ति ते पुष्कलां श्रियं लभन्ते ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - निरंतर सर्वत्र चलायमान, सर्वांचा प्रकाशक, संपूर्ण पदार्थांमध्ये व्यापक व पदार्थाचे दहन करणाऱ्या विद्युतरूपी अग्नीला जाणून जे कार्यात त्याचा उपयोग करतात ते अत्यंत श्रीमंत होतात. ॥ ३ ॥