पु॒रूण्य॑ग्ने पुरु॒धा त्वा॒या वसू॑नि राजन्व॒सुता॑ ते अश्याम्। पु॒रूणि॒ हि त्वे पु॑रुवार॒ सन्त्यग्ने॒ वसु॑ विध॒ते राज॑नि॒ त्वे ॥१३॥
purūṇy agne purudhā tvāyā vasūni rājan vasutā te aśyām | purūṇi hi tve puruvāra santy agne vasu vidhate rājani tve ||
पु॒रूणि॑। अ॒ग्ने॒। पु॒रु॒धा। त्वा॒ऽया। वसू॑नि। रा॒ज॒न्। व॒सुता॑। ते॒। अ॒श्या॒म्। पु॒रूणि। हि। त्वे इति॑। पु॒रु॒ऽवा॒र॒। सन्ति॑। अग्ने॑। वसु॑। वि॒ध॒ते। राज॑नि। त्वे इति॑ ॥१३॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब ईश्वर के तुल्य प्रजापालन विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथेश्वरवत्प्रजापालनविषयमाह ॥
हे अग्ने राजन् ! ते या वसुता तत्रस्थानि पुरूणि पुरुधा वसूनि त्वाया सहाऽहमश्याम्। हे पुरुवाराग्ने ! हि त्वे पुरूणि वसूनि सन्ति राजनि त्वे सति विधते कल्याणं जायते स त्वमस्माकं राजा भव ॥१३॥