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स च॑क्रमे मह॒तो निरु॑रुक्र॒मः स॑मा॒नस्मा॒त्सद॑स एव॒याम॑रुत्। य॒दायु॑क्त॒ त्मना॒ स्वादधि॒ ष्णुभि॒र्विष्प॑र्धसो॒ विम॑हसो॒ जिगा॑ति॒ शेवृ॑धो॒ नृभिः॑ ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa cakrame mahato nir urukramaḥ samānasmāt sadasa evayāmarut | yadāyukta tmanā svād adhi ṣṇubhir viṣpardhaso vimahaso jigāti śevṛdho nṛbhiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। च॒क्र॒मे॒। म॒ह॒तः। निः। उ॒रु॒ऽक्र॒मः। स॒मा॒नस्मा॑त्। सद॑सः। ए॒व॒याम॑रुत्। यदा। अयु॑क्त। त्मना॑। स्वात्। अधि॑। स्नुऽभिः॑। विऽस्प॑र्धसः। विऽम॑हसः। जिगा॑ति। शेऽवृ॑धः। नृऽभिः॑ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:87» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:33» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ईश्वर के उपासनाविषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (एवयामरुत्) विज्ञानवाला मनुष्य (उरुक्रमः) जो बहुत क्रमवाला (समानस्मात्) तुल्य (महतः) बड़े (सदसः) गृह से (निः) निरन्तर (चक्रमे) क्रमण करता है उसको जो (त्मना) आत्मा से (यदा) जब (अयुक्त) युक्त होता है (स्नुभिः) तथा पवित्र गुणों और (नृभिः) नायकों के साथ वर्त्तमान (स्वात्) अपने से (विष्पर्धसः) विशेष करके स्पर्द्धा करनेवाले (विमहसः) विशेष करके बड़े गुणों से विशिष्ट और (शेवृधः) सुख के बढ़ानेवालों को (अधि, जिगाति) प्राप्त होता है (सः) वह परमेश्वर उपासना करने योग्य और योगीजन सेवन करने योग्य है ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य विद्वान् पुरुष के द्वारा परमेश्वर के योग का अभ्यास करते हैं, वे सुख के धारण करनेवाले होते हैं ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेश्वरोपासनविषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! य एवयामरुदुरुक्रमः समानस्मान्महतः सदसो निश्चक्रमे तं यस्त्मना यदाऽयुक्त स्नुभिर्नृभिश्च सह वर्तमानः स्वाद् विष्पर्धसो विमहसः शेवृधोऽधि जिगाति स परमेश्वर उपासनीयो योगी च सेवनीयः ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (चक्रमे) क्रमते (महतः) (निः) नितराम् (उरुक्रमः) उरवो बहवः क्रमा यस्य (समानस्मात्) तुल्यात् (सदसः) गृहात् (एवयामरुत्) (यदा) (अयुक्त) युङ्क्ते (त्मना) आत्मना (स्वात्) (अधि) (स्नुभिः) पवित्रैर्गुणैः (विष्पर्धसः) ये विशेषेण स्पर्धन्ते तान् (विमहसः) विशेषेण महागुणविशिष्टान् (जिगाति) गच्छति (शेवृधः) सुखवर्धकान् (नृभिः) नेतृभिः ॥४॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या विदुषः सकाशात् परमेश्वरयोगमभ्यस्यन्ति ते सुखधरा जायन्ते ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे विद्वान पुरुषाद्वारे परमेश्वराच्या योगाचा अभ्यास करतात. ती सुखी होतात. ॥ ४ ॥