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उ॒त नो॒ गोम॑ती॒रिष॒ आ व॑हा दुहितर्दिवः। सा॒कं सूर्य॑स्य र॒श्मिभिः॑ शु॒क्रैः शोच॑द्भिर॒र्चिभिः॒ सुजा॑ते॒ अश्व॑सूनृते ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta no gomatīr iṣa ā vahā duhitar divaḥ | sākaṁ sūryasya raśmibhiḥ śukraiḥ śocadbhir arcibhiḥ sujāte aśvasūnṛte ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒त। नः॒। गोऽम॑तीः। इषः॑। आ। व॒ह॒। दु॒हि॒तः॒। दि॒वः॒। सा॒कम्। सूर्य॑स्य। र॒श्मिऽभिः॑। शु॒क्रैः। शोच॑त्ऽभिः। अ॒र्चिऽभिः। सुऽजा॑ते। अश्व॑ऽसूनृते ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:79» मन्त्र:8 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:22» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सुजाते) उत्तम विद्या से प्रकट हुई (अश्वसूनृते) बड़े ज्ञान से युक्त और (दिवः) प्रकाशमान की (दुहितः) कन्या के सदृश वर्त्तमान स्त्रि ! (सूर्य्यस्य) सूर्य्य के (रश्मिभिः) किरणों के (साकम्) साथ (उत) और (शुक्रैः) शुद्ध (शोचद्भिः) पवित्र करनेवाले (अर्चिभिः) श्रेष्ठ गुण, कर्म्म और स्वभाव के साथ (नः) हम लोगों को (गोमतीः) गौवें विद्यमान जिनमें उन (इषः) अन्न आदिकों को (आ, वह) सब प्रकार से प्राप्त कराइये ॥८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य्य की किरणों से उत्पन्न उषा उपकार करनेवाली होती है, वैसे ही शुभ गुण, कर्म और स्वभावों के सहित स्त्री आनन्द की उपकार करनेवाली होती है ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे सुजाते अश्वसूनृते दिवो दुहितरिव स्त्रि ! सूर्य्यस्य रश्मिभिः साकमुत शुक्रैः शोचद्भिरर्चिभिः सह नो गोमतीरिष आ वहा ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) अपि (नः) अस्मान् (गोमतीः) गावो विद्यन्ते यासु ताः (इषः) अन्नाद्याः (आ) (वहा) समन्तात्प्रापय। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (दुहितः) कन्येव (दिवः) प्रकाशमानस्य (साकम्) सार्धम् (सूर्य्यस्य) (रश्मिभिः) (शुक्रैः) शुद्धैः (शोचद्भिः) पवित्रकारकैः (अर्चिभिः) पूजितैर्गुणकर्मस्वभावैः (सुजाते) (अश्वसूनृते) ॥८॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । यथा सूर्य्यस्य किरणैरुत्पन्नोषा उपकारिणी भवति तथैव शुभगुणकर्मस्वभावैः सहिता स्त्र्यानन्दोपकारिणी जायते ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी सूर्याच्या किरणांपासून उत्पन्न झालेली उषा उपकारक असते. तसे शुभ गुण कर्म स्वभावयुक्त स्त्री आनंददायक, उपकारक असते. ॥ ८ ॥