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म॒हे नो॑ अ॒द्य बो॑ध॒योषो॑ रा॒ये दि॒वित्म॑ती। यथा॑ चिन्नो॒ अबो॑धयः स॒त्यश्र॑वसि वा॒य्ये सुजा॑ते॒ अश्व॑सूनृते ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mahe no adya bodhayoṣo rāye divitmatī | yathā cin no abodhayaḥ satyaśravasi vāyye sujāte aśvasūnṛte ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

म॒हे। नः॒। अ॒द्य। बो॒ध॒य॒। उषः॑। रा॒ये। दि॒वित्म॑ती। यथा॑। चि॒त्। नः॒। अबो॑धयः। स॒त्यऽश्र॑वसि। वा॒य्ये। सुऽजा॑ते। अश्व॑ऽसूनृते ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:79» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:21» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब दश ऋचावाले उनासीवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में स्त्री कैसी हो, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (उषः) श्रेष्ठ गुणों से प्रातःकालः के सदृश वर्त्तमान (वाय्ये) डोरे के सदृश फैलाने योग्य सन्ततिरूप (सुजाते) उत्तम रीति से उत्पन्न (अश्वसूनृते) बड़ी प्रिय वाणी जिसकी ऐसी हे स्त्रि ! (यथा) जैसे (दिवित्मती) प्रकाश से युक्त प्रातर्वेला (महे) बड़े (राये) धन के लिये प्रबोध देती है, वैसे (अद्य) आज (नः) हम लोगों को (बोधय) जनाइये और (चित्) भी (सत्यश्रवसि) सत्यों के श्रवण, सत्य वा अन्न में (नः) हम लोगों को (अबोधयः) जनाइये ॥१॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जैसे प्रातर्वेला दिन को उत्पन्न कर के सब को जगाती है, वैसे ही विद्यायुक्त स्त्री अपने सन्तानों को अविद्या के सदृश वर्त्तमान निद्रा से उठा कर विद्या को जनाती है ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ स्त्री कीदृशी भवेदित्याह ॥

अन्वय:

हे उषर्वद्वर्त्तमाने वाय्ये सुजातेऽश्वसूनृते स्त्रि ! यथा दिवित्मत्युषा महे राये बोधयति तथाऽद्य नो बोधय चिदपि सत्यश्रवसि नोऽस्मानबोधयः ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (महे) महते (नः) अस्मान् (अद्य) (बोधय) (उषः) उषर्वद्वर्त्तमाने (राये) धनाय (दिवित्मती) प्रकाशयुक्ता (यथा) (चित्) अपि (नः) अस्मान् (अबोधयः) बोधय (सत्यश्रवसि) सत्यानां श्रवणे सत्येऽन्ने वा (वाय्ये) तन्तुसदृशे सन्ताननीये विस्तारणीये सन्ततिरूपे (सुजाते) सुष्ठुरीत्योत्पन्ने (अश्वसूनृते) अश्वा महती सूनृता प्रिया वाग्यस्यास्तत्सम्बुद्धौ। अश्व इति महन्नामसु पठितम्। (निघं०३।६) ॥१॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । यथा प्रातर्वेला दिनं जनयित्वा सर्वाञ्जागरयति तथैव विदुषी स्त्री स्वसन्तानानविद्यानिद्रात उत्थाप्य विद्यां बोधयति ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात प्रातःकाल व स्त्रीच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशी उषा दिवस उत्पन्न करून सर्वांना जागृत करते. तसेच विद्यायुक्त स्त्री स्वसंतानांना अविद्यारूपी निद्रेतून जागृत करून विद्या देते. ॥ १ ॥