न सं॑स्कृ॒तं प्र मि॑मीतो॒ गमि॒ष्ठान्ति॑ नू॒नम॒श्विनोप॑स्तुते॒ह। दिवा॑भिपि॒त्वेऽव॒साग॑मिष्ठा॒ प्रत्यव॑र्तिं दा॒शुषे॒ शंभ॑विष्ठा ॥२॥
na saṁskṛtam pra mimīto gamiṣṭhānti nūnam aśvinopastuteha | divābhipitve vasāgamiṣṭhā praty avartiṁ dāśuṣe śambhaviṣṭhā ||
न। सं॒स्कृ॒तम्। प्र। मि॒मी॒तः॒। गमि॑ष्ठा। अन्ति॑। नू॒नम्। अ॒श्विना॑। उप॑ऽस्तुता। इ॒ह। दिवा॑। अ॒भि॒ऽपि॒त्वे। अव॑सा। आऽग॑मिष्ठा। प्रति॑। अव॑र्त्तिम्। दा॒शुषे॑। शम्ऽभ॑विष्ठा ॥२॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
हे गमिष्ठा शम्भविष्ठा नूनमुपस्तुताऽश्विनेह संस्कृतं न प्र मिमीतः। अभिपित्वेऽवसाऽवर्तिं प्रति मिमीतो दाशुषे दिवान्त्यागमिष्ठा भवेताम् ॥२॥