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मध्व॑ ऊ॒ षु म॑धूयुवा॒ रुद्रा॒ सिष॑क्ति पि॒प्युषी॑। यत्स॑मु॒द्राति॒ पर्ष॑थः प॒क्वाः पृक्षो॑ भरन्त वाम् ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

madhva ū ṣu madhūyuvā rudrā siṣakti pipyuṣī | yat samudrāti parṣathaḥ pakvāḥ pṛkṣo bharanta vām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मध्वः॑। ऊँ॒ इति॑। सु। म॒धु॒ऽयु॒वा॒। रुद्रा॑। सिस॑क्ति। पि॒प्युषी॑। यत्। स॒मु॒द्रा॒। अति॑। पर्ष॑थः। प॒क्वाः। पृक्षः॑। भ॒र॒न्त॒। वा॒म् ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:73» मन्त्र:8 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:12» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मधूयुवा) सोम आदि रस को मिलाने और (रुद्रा) दुष्टों के रुलानेवाले जनो ! (यत्) जो (पिप्युषी) पान कराती हुई (मध्वः) सोमलता के रस को (उ) तर्क-वितर्क से (सु, सिषक्ति) अच्छे प्रकार सींचती है, उससे आप दोनों (समुद्रा) उत्तम प्रकार द्रवित होनेवालों को (अति, पर्षथः) सींचते हैं जिससे (पक्वाः) पके (पृक्षः) सम्बन्ध हुए फल (वाम्) आप दोनों का (भरन्त) पोषण करते हैं ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे सूर्य्य और वायु वृष्टि से सब को सींचते और पके हुए फलों को उत्पन्न करते हैं, वैसे आप लोग भी आचरण करो ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे मधूयुवा रुद्रा ! यद्या पिप्युषी मध्व ऊ षु सिषक्ति तया युवां समुद्रातिपर्षथो यतः पक्वाः पृक्षो वां भरन्त ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मध्वः) मधुरस्य (उ) वितर्के (सु) (मधूयुवा) यौ मधूनि यावयतस्तौ (रुद्रा) दुष्टानां रोदयितारौ (सिषक्ति) सिञ्चति (पिप्युषी) प्यायन्ती (यत्) या (समुद्रा) यानि सम्यग्द्रवन्ति (अति) (पर्षथः) सिञ्चथः (पक्वाः) (पृक्षः) संपर्काः (भरन्त) भरन्ति (वाम्) युवयोः ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यथा सूर्य्यवायू वृष्ट्या सर्वान् सिञ्चतः पक्वानि फलानि जनयतस्तथा यूयमप्याचरत ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जसे सूर्य, वायू, वृष्टी सर्वांना सिंचित करतात व पिकलेली फळे उत्पन्न करतात तसे तुम्ही आचरण करा. ॥ ८ ॥