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मा कस्या॑द्भुतक्रतू य॒क्षं भु॑जेमा त॒नूभिः॑। मा शेष॑सा॒ मा तन॑सा ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mā kasyādbhutakratū yakṣam bhujemā tanūbhiḥ | mā śeṣasā mā tanasā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मा। कस्य॑। अ॒द्भुत॒क्र॒तू॒ इत्य॑द्भुतऽक्रतू। य॒क्षम्। भु॒जे॒म॒। त॒नूभिः॑। मा। शेष॑सा। मा। तन॑सा ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:70» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:8» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

उत्तमों को किसी पुरुष से भी दान कभी न ग्रहण करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अद्भुतक्रतू) अद्भुत बुद्धि वा कर्मवालो ! हम लोग (तनूभिः) शरीरों से (कस्य) किसी के (यक्षम्) दान का (मा) नहीं (भुजेम) सेवन करें और (शेषसा) अन्यों के साथ वर्त्तमान हुए (मा) नहीं पालन करें और (तनसा) पौत्र आदि के सहित (मा) नहीं पालन करें ॥४॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् जन ऐसा उपदेश करें जिससे कि किसी से दान कोई भी नहीं ग्रहण करे, वैसे ही माता और पिता से पुत्र, पौत्र आदि भी दान की रुचि न करें ॥४॥ इस सूक्त में प्राण उदान और विद्वान् के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह सत्तरवाँ सूक्त और अष्टम वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

उत्तमैः कस्माच्चिदपि पुरुषाद्दानं कदाचिन्न ग्रहीतव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे अद्भुतक्रतू ! वयं तनूभिः कस्यचिद्यक्षं मा भुजेम। शेषसा मा भुजेम तनसा मा भुजेम ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मा) (कस्य) (अद्भुतक्रतू) अद्भुतां क्रतुः प्रज्ञा कर्म्म वां ययोस्तौ (यक्षम्) दानम् (भुजेमा) पालयेम । अत्र संहितायामिति दीर्घः। (तनूभिः) शरीरैः (मा) (शेषसा) अपत्यैः सह वर्त्तमानाः (मा) (तनसा) पौत्रादिसहिता ॥
भावार्थभाषाः - विद्वांस एवमुपदेशं कुर्य्युर्येन कस्माच्चिद्दानं कोऽपि न गृह्णीयात्। तथैव मातापितृभ्यां पुत्रपौत्रादयोऽपि दानरुचिं न कुर्य्युरिति ॥४॥ अत्र मित्रावरुणविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति सप्ततितमं सूक्तमष्टमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्वानांनी असा उपदेश करावा की कोणाकडूनही दान घेऊ नये. तसेच माता, पिता, पौत्र इत्यादींनी ही दानरुची ठेवू नये. ॥ ४ ॥