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ऋ॒तेन॑ ऋ॒तमपि॑हितं ध्रु॒वं वां॒ सूर्य॑स्य॒ यत्र॑ विमु॒चन्त्यश्वा॑न्। दश॑ श॒ता स॒ह त॑स्थु॒स्तदेकं॑ दे॒वानां॒ श्रेष्ठं॒ वपु॑षामपश्यम् ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ṛtena ṛtam apihitaṁ dhruvaṁ vāṁ sūryasya yatra vimucanty aśvān | daśa śatā saha tasthus tad ekaṁ devānāṁ śreṣṭhaṁ vapuṣām apaśyam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ऋ॒तेन॑। ऋ॒तम्। अपि॑ऽहितम्। ध्रु॒वम्। वा॒म्। सूर्य॑स्य। यत्र॑। वि॒ऽमु॒चन्ति॑। अश्वा॑न्। दश॑। श॒ता। स॒ह। त॒स्थुः॒। तत्। एक॑म्। दे॒वाना॑म्। श्रेष्ठ॑म्। वपु॑षाम्। अ॒प॒श्य॒म् ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:62» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:30» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब नव ऋचावाले बासठवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में सूर्य्यगुणों को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अध्यापक और उपदेशक जनो ! (यत्र) जहाँ विद्वान् जन (सूर्यस्य) सूर्य्य के (दश) दश (शता) सैकड़ों (अश्वान्) किरणों को (विमुचन्ति) छोड़ते और (सह) साथ (तस्थुः) स्थित होते हैं (वाम्) तुम दोनों के (ऋतेन) सत्य कारण से (ध्रुवम्) निश्चल (ऋतम्) सत्यस्वरूप (अपिहितम्) आच्छादित है (तत्) उस (एकम्) अद्वितीय (देवानाम्) विद्वानों के और (वपुषाम्) रूपवाले शरीरों के (श्रेष्ठम्) श्रेष्ठभाव को मैं (अपश्यम्) देखता हूँ, उसको आप लोग भी देखिये ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो यह सूर्य्यलोक है, वह परमेश्वर से अनेक तत्त्वों द्वारा रचा गया है, इस कारण अनेक गुणों से युक्त है, उसको तुम लोग यथावत् जानो ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ सूर्य्यगुणानाह ॥

अन्वय:

हे अध्यापकोपदेशकौ ! यत्र विद्वांसः सूर्यस्य दश शताऽश्वान् विमुचन्ति सह तस्थुर्वां युवयोरृतेन ध्रुवमृतमपिहितमस्ति तेदकं देवानां वपुषां च श्रेष्ठमहमपश्यं तदेव यूयमपि पश्यत ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ऋतेन) सत्येन कारणेन (ऋतम्) सत्यं स्वरूपम् (अपहितिम्) आच्छादितम् (ध्रुवम्) निश्चलम् (वाम्) युवयोः (सूर्यस्य) सवितुः (यत्र) (विमुचन्ति) त्यजन्ति (अश्वान्) किरणान् (दश) (शता) शतानि (सह) सार्धम् (तस्थुः) तिष्ठन्ति (तत्) (एकम्) अद्वितीयम् (देवानाम्) विदुषाम् (श्रेष्ठम्) (वपुषाम्) रूपवतां शरीराणाम् (अपश्यम्) पश्यामि ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! योऽयं सूर्यलोकः स परमेश्वरेणानेकैस्तत्त्वैर्निर्मितत्वादनेकैर्गुर्णैर्युक्तोऽस्ति तं यथावद्विजानीत ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात सूर्य, प्राण, उदान व राजा यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! या सूर्यलोकाची निर्मिती परमेश्वराने अनेक तत्त्वांद्वारे केलेली आहे. त्यामुळे त्याच्यामध्ये अनेक गुण आहेत. हे तुम्ही यथायोग्य जाणा. ॥ १ ॥